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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है ७५ ® मानव मन की यह कितनी बड़ी कमजोरी है : जो सुख उसके पास है... उसको वह महसूस नहीं करता...और जो सुख या सुख के साधन उसकी पहुँच के बाहर हैं...उस पर अपनी निगाहें जमाए रखता है...और मन ही मन दुःखी रहता है। ® जिन्दगी में बनती-बिगडती घटनाओं को बड़ी कठोरता से नहीं लेना चाहिए। • अनेक काँटों के बीच खिला हुआ एक गुलाब हमारी आँखों में प्रसन्नता भर सकता है... पर अनेकों के प्रेम के बीच एकाध का दुर्व्यवहार हमें पीड़ा का शिकार बना डालता है...कितनी विचित्रता है यह! ® अतृप्ति हमें नए-नए सुखों के पीछे भटकाती है और आसक्ति मिले हुए सुखों में पागल बनाती है.../ पत्र : १७ प्रिय गुमुक्षु! धर्मलाभ, जब तेरा पत्र मिला तब आकाश में से उदासी टपक रही थी, राजमार्ग भी कुछ बेचैन से लगते थे और सामने ही एक निराशा में डूबा हुआ आदमी बैठा था, जो वातावरण को वेदनामय बना रहा था। जब तेरा पत्र पढ़ा... मुझे लगा कि वह दिन भी वैसा ही विषादग्रस्त था! तेरा चित्त वेदना से कितना कराह रहा होगा... इसकी कल्पना करके मेरा हृदय भर गया है। कैसा संसार है! सर्वज्ञ परमात्मा ने संसार को जैसा दुःखमय बताया है, वैसा ही व्याधि-वेदनाओं से दुःखपूर्ण है। संसार के सुखों से भी दुःखों की शक्ति अपार है! मनुष्य के पास सौ सुख हों और एक दुःख हो, तो भी मनुष्य अपने आपको दुःखी मानता है! हाँ, सौ सुख होने पर भी वह अपने आपको सुखी नहीं मानता! सौ सुखों में से एक सुख चला जाता है... मनुष्य रोने लगता है! ९९ सुख पास होते हुए भी वह रोता है... बिलखता है! मात्र एक सुख चला गया... फिर भी! ___मनुष्य मन की कैसी आदत है यह! जो सुख मनुष्य के पास होता है, उससे वह सन्तुष्ट नहीं रहता। जो सुख उसके पास नहीं होता है, वह सुख पाने के For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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