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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है महाराजा जनक ने प्रत्युत्तर दिया : 'हे महात्मन्, जब मैं यहाँ आता हूँ, जूता बाहर उतार कर आता हूँ, वैसे ममता भी बाहर उतार कर आता हूँ। किसका महल? किसका अन्तःपुर? किसका परिवार? मैं जो हूँ इस पार्थिव दुनिया से भिन्न हूँ। इस शरीर से भी भिन्न हूँ। गुरुदेव, जो मेरा नहीं है, जो मैं नहीं हूँ, वह जल भी जाए तो मुझे क्या? मेरा कुछ भी जलता नहीं है। फिर मैं क्यों जाऊँ यहाँ से?' संत प्रसन्न हो गए। उन्होंने दूसरे श्रोताओं को कहा : 'अब आप लोग समझ गए होंगे कि मैं, महाराजा जनक के आने के बाद ही प्रवचन क्यों शुरू करता हूँ।' लोग नतमस्तक हो गए। जनक ने अपना हृदय कैसा निःसंग बनाया होगा? हम को अपना हृदय वैसा निःसंग और निर्लेप बनाना होगा, तभी शांति, स्वस्थता और प्रसन्नता का अनुभव कर सकेंगे। जनक की बात यदि बहुत पुरानी लगती हो और अंतरात्मा को स्पर्श नहीं करती हो तो दूसरा उदाहरण तेरे सामने है। सिनेमा और नाटक में काम करने वाले अभिनेता और अभिनेत्रियाँ होती है न? मंच पर वे लोग सब प्रकार का अभिनय करते हैं, परन्तु उनका हृदय बिल्कुल निर्लेप रहता है! वे लोग हँसते हैं और रोते हैं, क्या उनका हृदय हँसता है? रोता है? नहीं, हँसने का मात्र अभिनय! रोने का मात्र अभिनय! वे लोग 'मंच' पर शादी भी करते हैं और मर भी जाते हैं! क्या वे हृदय से शादी करते हैं? मृत्यु की वेदना हृदय अनुभव करता है क्या? नहीं, शादी का मात्र अभिनय! मरने का भी अभिनय! देखने वालों के हृदय पर भले आघात हो, अभिनेता के हृदय पर कोई आघात नहीं! यह संसार एक रंगमंच है, 'स्टेज' है। उस पर हम भिन्न-भिन्न प्रकार के अभिनय कर रहे हैं! जन्म-जीवन और मृत्यु... सब अभिनय है। वास्तविकता कुछ नहीं! उपाध्याय श्री यशोविजयजी ने 'ज्ञानसार' में कहा है : ____ पश्यन्नेव परद्रव्यनाटकं प्रतिपाटकं। भवचक्रपुरस्थोऽपि नामूढ़: परिखिद्यते ।। 'संसार की गली-गली में परद्रव्यों का नाटक देखो! देखते ही रहो! दर्शक बने रहो! आपको क्लेश नहीं होगा!' For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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