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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७ जिंदगी इम्तिहान लेती है प्रशंसा की कामना नहीं हो, परन्तु पारलौकिक दैवी दिव्य सुखों की कामना हृदय में भरकर, परमात्मा से प्रेम करने का प्रदर्शन करें! गुरुप्रेम की बातें करें, धर्मप्रेम का दिखावा करें। इसलिए परमात्मा की भक्ति करता है, ताकि देवलोक के सुख मिले। इसलिए व्रत-नियम का पालन करता है, ताकि दिव्य वैभव और दिव्य शरीर-संपत्ति मिले! ___ यह परमात्मप्रेम या धर्मप्रेम नहीं है, यह भी 'स्लो पोइजन' Poison है! धीमा जहर है। यह जहर धीरे-धीरे मारता है। दिखता है, निष्काम प्रेम पर होता है, सकाम प्रेम! प्रेम की आड़ में यदि कुछ भी पाने की कामना है, यहाँ पाने की या कहीं और जगह पर कुछ पाने की कामना है, तो वह प्रेम कामना सहित प्रेम है। इसलिए मैं हमेशा कहा करता हूँ कि वही प्रेम सच्चा है, जहाँ हमें पाने की कामना नहीं होती वरन देने की... समर्पण की ही भावना रहती है। प्रेम समर्पण करवाता है। स्वार्थ प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है। ___ प्रिय मुमुक्ष! प्रेम की परिभाषाओं में उलझना नहीं है। उलझनों के लिए यह नहीं लिख रहा हूँ, मन की समस्याओं को सुलझाने के लिए लिखता हूँ | मन का समाधान ही तो परमब्रह्म की मग्नता में हेतु है। स्वभावसुख की अनुभूति, मन का समाधान किए बिना हो नहीं सकता। मन का समाधान करते ही रहना होगा। इस वर्षाकाल में संतोषजनक चिन्तन-मनन चलता रहा है। लेखन भी तृप्ति का अनुभव कराता रहा है। 'ज्ञानसार' ग्रंथ पर अनुप्रेक्षा हो रही है और 'प्रशमरति' ग्रन्थ पर विवेचन भी लिखता जा रहा हूँ | साथ-साथ एक उपन्यास भी लिख रहा हूँ! उधर प्रतिदिन 'शांतसुधारस' ग्रन्थ पर प्रवचन भी दे रहा हूँ | और 'योगबिन्दु' ग्रन्थ का अध्ययन करा रहा हूँ | कोई खेद नहीं, क्लेश नहीं और संताप नहीं! मुझे ऐसा लगता है कि निर्गुण और निष्काम प्रेम ही इसका मूल स्त्रोत नहीं होगा क्या? जीव मात्र के प्रति जब कभी ऐसे प्रेम की आन्तर अनुभूति होती है, अपूर्व आनंद पाता हूँ...। तू भी ऐसा आनंद अनुभव करे, यही मेरी शुभ कामना है। तेरे प्रति मेरी यह कामना भी क्या निष्काम प्रेम नहीं है? कुशल रहें। - प्रियदर्शन For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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