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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है ४० समझ गया न 'गुणरहित प्रेम' कहने का तात्पर्य? हमारा प्रेम इसीलिए बदल जाता है, हमने प्रेम का आधार ही परिवर्तनीय बनाया है। गुण परिवर्तनशील है। आधार परिवर्तनशील होगा तो आधेय कहाँ से स्थिर रहेगा? लोटा हिलेगा, तो लोटे में रहा हुआ पानी भी हिलेगा ही! मकान गिर पड़ेगा, तो मकान में रहे मनुष्य कैसे सलामत रहेंगे? नारद कहते हैं कि गुणों को प्रेम का आधार मत बनाइए । दोष तो प्रेम का आधार कभी बन ही नहीं सकता, इसलिए दोष को आधार नहीं बनाने की बात करनी अनावश्यक है। दूसरे के दोष देखकर, ग़लतियाँ देखकर कभी उससे प्रेम हुआ है? कभी नहीं। प्रेम का आधार गुण ही बनता है और हम बनाते आए हैं। इसलिए प्रेम भंग होता है और हम रोते हैं। निराश हो जाते हैं। विलाप करते हैं। गुणों की दो गति है! या तो गुण नष्ट हो जाएगा अथवा हमें गुण, गुण रूप दिखेगा नहीं! या तो गुण बदल जाएगा या तो हमारी दृष्टि बदल जाएगी। इसका परिणाम प्रेम का विसर्जन, प्रेम का द्वेष में परिवर्तन | वास्तव में वह प्रेम ही नहीं होता है - जो नष्ट हो जाता है। जो बदल जाता है। प्रेम अविनाशी तत्त्व है। तुम्हारे मन में एक शंका पैदा हो सकती है : 'तो क्या प्रेम निराधार हो सकता है?' हाँ, हो सकता है। हो सकता है- इसलिए तो नारद ने बताया है! तू कहेगा : 'हम तो दूसरे मनुष्य का गुण देखते हैं - उससे प्रेम हो जाता है।' वह प्रेम नहीं होता है, आकर्षण होता है! आकर्षण प्रेम नहीं है। आकर्षण हमेशा क्षणिक होता है। रबड़ खींचा जाता है, परन्तु खींचा हुआ रहना उसका स्वभाव नहीं, खींचने वाला छोड़ देगा रबड़ को, कैसा हो जाएगा? जैसा था, वैसा! किसी का गुण या शक्ति देखकर मनुष्य उसके प्रति आकर्षित जाता है... वह आकर्षण स्थाई नहीं होता, क्षणिक होता है। अब दूसरी दृष्टि से सोचें गुणरहित प्रेमस्वरूप के बारे में | गुण देखकर प्रेम होता है, तो दोष देखकर द्वेष अवश्य होगा। प्रेम का आधार यदि गुण को बनाया तो द्वेष का आधार, दोष बन ही जाएगा। क्या हर इंसान में, हर प्राणी में गुण ही होते हैं? दोष होते ही नहीं? प्रत्येक संसारी जीव में गुण और दोषदोनों होते हैं। इससे क्या होता है- तू जानता है? अपने जीवन में यह हो रहा है- गुणों की जगह दोष ही देखने के हम आदी बन गए हैं। तुम्हारा मेरे प्रति प्रेम है, इसलिए कि तू मुझ में गुण देखता है। बस, एक For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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