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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जिंदगी इम्तिहान लेती है ३८ • प्रेम के बारे में कुछ भी लिखना बड़ा कठिन है। प्रेम करना उतना मुश्किल नहीं! चूँकि अनुभूति की यात्रा को शब्दों से सिंगारना या अक्षरों में उतारना सहज नहीं है! Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir • दोषरहित प्रेम के बारे में तो सुना होगा... पर 'प्रेम गुणरहित होना चाहिए ....' यह बात जरा अजीब सी लगती है ना? पर वास्तविकता वही है ! • आकर्षण हमेशा अल्पजीवी होता है... उसे प्रेम का माध्यम बनाया तो प्रेम वहम में बदल जाएगा। * कामनाओं से कुंठित मन प्रेम नहीं कर पाता ! प्रेम कामना से रहित होना चाहिए । प्रिय मुमुक्षु, * जरा भीतर को टटोलने की आवश्यकता है...। प्रेम के नाम पर हम क्या कर रहे हैं? कहीं अमृत के लेबल तले जहर के घूँट तो नहीं पी रहे है ना? पत्र : ९ धर्मलाभ, तेरे प्रत्युत्तर की अपेक्षा थी, तेरा पत्र नहीं आया, फिर भी मैं पत्र लिख रहा हूँ। कभी ऐसा हो जाता है...! कभी किसी का पत्र आने पर भी दो-दो महीने तक प्रत्युत्तर नहीं लिखा जाता है, शांति से विस्तृत पत्र लिखूँगा, अभी समय नहीं है... लिखने का 'मूड' नहीं है...' इस प्रकार सोचते-सोचते समय निकल जाता है। कभी बिना इन्तजार किए प्रत्युत्तर का पत्र लिखने बैठ जाता हूँ । 'प्रेम' के विषय में लिखना इतना मुश्किल है, जितना प्रेम करना मुश्किल नहीं! परन्तु लिखना इसलिए सरल बन गया है, चूँकि नारद के 'भक्तिसूत्र' का आधार मिल गया! इस ऋषि ने 'प्रेम' की परिभाषा कर प्रेम की सृष्टि को दिव्य बना दिया है। प्रेम की दुनिया में दिव्यता के दर्शन कराए हैं। प्रेम 'राग' नहीं है, प्रेम 'मोह' नहीं है। प्रेम कोई 'आसक्ति' नहीं है। प्रेम कोई 'काम' या 'वासना' नहीं है। तू कहेगा ‘ऐसा प्रेम क्या इस संसार में संभव है ? क्या किसी व्यक्ति में ऐसा प्रेम संभव है?' हाँ, संभव है, ऐसा प्रेम हो सकता है। यदि ऐसा प्रेम असंभवित होता तो एक महर्षि क्यों बताते वैसा प्रेम ? अशक्य और असंभव बात बताना For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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