SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है १२ मानसिक दु:खों से मुक्ति पाने का उपाय क्या है? स्वस्थ मन से चिन्तन किया है? सोचा है? अपनी कल्पना के अनुरूप परिस्थितियों का निर्माण करना, अपने बस की बात नहीं है | कवियों की कविता की दुनिया वास्तविकता से हजारों किलोमीटर दूर है। चलचित्रों की दुनिया वास्तविकता से लाखोंकरोड़ों मील दूर है। तू यदि उन कविताओं की दुनिया को अथवा चलचित्रों की दुनिया को तेरी कल्पना की दुनिया बनाना चाहता है... अपने भावी जीवन की सृष्टि करना चाहता है, तो तू गंभीर भूल कर रहा है। तेरे विचार यदि उन कविताओं से, उन उपन्यासों से, उन चलचित्रों से निर्मित हैं - और तू उन विचारों का आग्रही है, तो मेरे ख्याल से इस दुनिया में... जो कि वास्तविक दुनिया है, उसमें किसी से तेरा वैचारिक या व्यावहारिक संवाद स्थापित नहीं हो सकेगा। वैचारिक-विसंवादिता और व्यावहारिक संघर्ष सदैव बना रहेगा। वैचारिक-आग्रह में जाने से पूर्व, विचारों का संशोधन हो जाना चाहिए। ___ 'यह विचार स्व-पर के लिए हितकारी है या नहीं? यह विचार तर्कसंगत है या नहीं? यह विचार शांति समता और समाधि की तरफ ले जाने वाला है या नहीं? इस विचार का व्यावहारिक रूप सुन्दर, सरल और संवादी है या नहीं? इतना सोचना अनिवार्य होता है। इतना भी सोचे बिना यदि वैचारिक आग्रह में फँस गया तो वह आग्रह दुराग्रह बन जाएगा और राहु से भी भयंकर ग्रह-दशा में फँस जाएगा। एक काम करेगा? अभी कुछ समय तू अपने भविष्य की कल्पनाएँ करना छोड़ दे। कल्पना की स्वर्ग-रचना करना छोड़ दे। जब अच्छा 'मटीरीयल' नहीं मिलता हो, ईंट, 'सिमेन्ट' लोहा, लकड़ी... वगैरह अच्छा नहीं मिलता हो, तब भवननिर्माण नहीं करना चाहिए, यदि कर दिया तो ध्वस्त होने में देर नहीं लगेगी। वैसे जब तक अच्छे विचार-ज्ञान-शुद्ध विचार नहीं हों वहाँ तक भविष्य की कल्पनाओं का महल नहीं बनाना चाहिए | भूतकाल की ऐसी स्मृतियों में मत डूब जा कि जिससे वेदनाएँ उभर आए, मन व्यथित हो जाये और वर्तमान क्षण दुःखमय बन जाए! ___ वर्तमान क्षण को सुखमय, शांतिमय और आनंदमय बनाने का पुरुषार्थ शुरू कर दे। वह पुरुषार्थ कैसा होता है - आगे कभी लिखूगा.. इस बारे में, तू चाहेगा तब! इस पत्र के प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा करूँगा... तेरे शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य की कामना करता हूँ। - प्रियदर्शन For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy