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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है २१५ परछाई भी नहीं पड़ सकती। सभी जीवों का मित्र बनने के लिये अहंकार और तिरस्कार को हृदय से निकाल देने होंगे। पर्युषणपर्व में यह काम किया जाना चाहिए था। जिनके-जिनके साथ तूने दुर्व्यवहार किया था, जिनके विषयों में तूने कटुतापूर्ण विचार किये थे, उनके पास जाकर तूने क्षमायाचना की थी? नहीं की हो तो अब भी कर लेना। दूसरी संवत्सरी की राह मत देखना । हृदयशुद्धि करने के लिए हर क्षण महापर्व है। वह क्षण, वह दिन महापर्व बन जाता है, जिस क्षण... जिस दिन मनुष्य अपने हृदय को निर्मल... निष्पाप बनाता है। कभी ऐसा भी संसार में अनुभव होता है कि जिस व्यक्ति के प्रति अपना कोई वैर-विरोध नहीं हो, कोई दुर्भावना नहीं हो, फिर भी वह व्यक्ति अपनी ओर विरोध भावना रखता हो। ऐसे प्रसंगों में अपना मन कहता है : 'मैंने तो उसका कोई बुरा किया नहीं है, उसके विषय में बुरा विचार भी नहीं किया है, फिर भी वह मेरे प्रति रोष रखे... तो रखने दो... मैं क्या करूँ?' __ऐसा नहीं सोचना चाहिए। सोचना चाहिए कि : 'मैंने पूर्वजन्मों में कभी न कभी उस जीव का अपराध किया होगा... जाने-अनजाने उसका कुछ भी बुरा किया होगा... अन्यथा वह मेरे प्रति दुर्भाव क्यों रखे? मैं उसके लिये भी शुभ कामना करता हूँ कि उसके हृदय में किसी भी जीवात्मा के लिये दुर्भावना नहीं रहे। मन को, चित्त को, अंतःकरण की प्रसन्नता से पुलकित रखना है तो क्षमाधर्म का अवलम्बन लेना ही होगा। हमारे लिये तो क्षमाधर्म की आराधना अनिवार्य है, तुम्हारे श्रमणोपासकों के लिये भी क्षमाधर्म का पालन अति आवश्यक है। पारिवारिक जीवन में और सामाजिक जीवन में तभी शान्ति और ऐक्यता अखंड रह सकती है, जब क्षमाधर्म का समुचित पालन होगा। क्षमायाचना करो और क्षमादान देते रहो! कोई अपराधी मनुष्य क्षमा माँगने आये तो प्रेम से क्षमा देते रहो! किसी के भी अपराधों को भूलों को दिमाग की डायरी में लिख कर मत रखो। यहाँ भुज में चातुर्मासकाल खूब प्रसन्नता से एवं विविध धर्माराधन में व्यतीत हो रहा है। संघ का और नगर का वातावरण प्रफुल्लित और उल्लसित है। पर्युषणपर्व की आराधना अभूतपूर्व हुई है। अब कल से ही प्रभुभक्ति का आठ दिन का महोत्सव शुरू हो रहा है। For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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