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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है १८४ साधु उनकी इच्छानुसार चलने वाले नहीं हैं, सभी प्रकार की अनुकूलतायें भी नहीं हैं। किसी व्यक्ति को उनके प्रति दुर्भाव भी हो सकता है... परंतु हृदय में किसी के प्रति दुर्भाव नहीं! हर परिस्थिति में समता और संतोष! जीवन की यही तो श्रेष्ठ उपलब्धि है! तप-ज्ञान और भक्ति के साथ-साथ सोचने और समझने की दृष्टि होना जीवन में अति आवश्यक है। मन के विचारों को मोड़ देना अनिवार्य है। बाहर के तो कोई दुःख अभी तेरे आसपास नहीं है? जो कोई दुःख है, अशान्ति है, मानसिक है न? मन के विचार ही तो परेशान कर रहे हैं? उन विचारों को बदलना अति आवश्यक है। ___ मान ले कि तेरे जीवन में कोई दुःख है, तू उस दुःख से बचने के लिये स्थानान्तर करेगा... दूसरे स्थान में चला जायेगा, क्या वहाँ पर कोई दुःख नहीं होगा? दूसरे स्थान में क्या तेरी इच्छाओं के अनुसार सब कुछ मिलेगा? वहाँ तेरे मन को किसी प्रकार की अशांति नहीं होगी? स्थानान्तर करने से कुछ क्षणों के लिये तू सुख-शान्ति पा सकता है, स्थायी शान्ति नहीं पा सकेगा। स्थायी शान्ति तो स्वस्थ और समकालीन मन में से ही प्राप्त होगी। तू अपने उद्विग्न मन को उपशान्त करने का प्रयत्न कर | ऐसे धर्मग्रंथों का, अध्यात्म के ग्रंथों का अध्ययन-परिशीलन करके मन को उपशान्त कर | परमात्मा की स्तवना-प्रार्थना और ध्यान करके मन को उपशांत कर | ज्यों-ज्यों मन उपशान्त होता जायेगा, तेरी प्रफुल्लता बढ़ती जायेगी। तेरा आन्तरआनन्द बढ़ता जायेगा। मन की तीव्र इच्छाओं को, प्रबल कामनाओं को निर्बल बना देनी होगी। ___ महानुभाव, छोटी सी इस जिंदगी में क्यों आन्तरआत्मानन्द का अनुभव नहीं कर लेता है? दुनिया को उनकी राहों पर चलने दे, तू अपने मोक्षमार्ग पर चलता रहे! अन्तर्मुख बनकर चलता रहे निर्भय और निश्चिंत होकर चलता रहे! निर्भयता, निश्चितता और अन्तर्मुखता की प्राप्ति के लिये ऐसे तीर्थों में जाकर पुरुषार्थ करना चाहिए | सम्यग्ज्ञान के साथ परमात्मभक्ति करने से तेरा पुरुषार्थ सफलता प्राप्त करेगा। तू स्वस्थ-चित्त बन जा! तुझे मैं कुछ आन्तर अनुभूति की बातें लिखना चाहता हूँ। कुछ ऐसी बातें हैं कि जो तेरे जीवन में उपयोगी बन सकती हैं। परन्तु तेरा मन स्वस्थ और निराकुल होना अनिवार्य है... अन्यथा मेरी लिखी हुई बातें तेरे पल्ले नहीं पड़ेगी। For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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