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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ जिंदगी इम्तिहान लेती है ® हार्दिक संबंधों की दुनिया में बुद्धिवादिता को तनिक भी जगह नहीं है। ® दिल की दुनिया में दलीलें दीवार बन जाती है। ® संबंधों की नम्रता को बनाये रखने के लिये तर्क-वितर्क को त्यागना ही होगा। ® समय, साधन एवं संपत्ति का जैसे दुरुपयोग नहीं करना है... वैसे ही अपनी बुद्धिमत्ता का भी दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। ® जरूरत से ज्यादा बुद्धिवादिता ने अनेक परिवारों को तोड़ा है, समाज को क्लेशमय बनाया है और जीवन को बदसूरत बना डाला है। पत्र : ४२ प्रिय मुमुक्षु! धर्मलाभ! __ भीलड़िया-तीर्थ से विहार कर कच्छ के वागड़ प्रदेश में प्रवेश किया है। अब १०-१५ दिनों में भद्रेश्वर तीर्थ में पहुँचने की संभावना है। तेरा पत्र मिल गया था, परन्तु कुछ स्वास्थ्य की प्रतिकूलता से शीघ्र प्रत्युत्तर नहीं लिख पाया । इस प्रकार तो भाई, पारिवारिक संघर्ष चलता ही रहेगा। कभी भी शान्ति स्थापित नहीं होगी और तू वैराग्य की भाषा में चिल्लाता रहेगा कि संसार में कहीं पर भी शान्ति नहीं है! जीवन जीने की दृष्टि के अभाव में ही ज्यादातर क्लेश और संताप बढ़ते रहते हैं। __ मेरी समझ में नहीं आता है कि तू क्यों अपनी माता से बात-बात में झगड़ता है! तू अपने पिता से क्यों टकराता रहता है? मुझे लगता है कि तू हर जगह अपनी बुद्धि का हद से ज्यादा उपयोग करता है! मैं मानता हूँ कि तेरे पास बहुत बुद्धि है! कभी-कभी तेरी बुद्धि की मेरे मन में भी ईर्ष्या हो आती है! तू भी अपनी बुद्धि-शक्ति को जानता है! घर में हर बात को तू बौद्धिकभूमिका से नापने का प्रयत्न करता है। हर बात में तू तर्क-वितर्क करता रहा तू अपनी यह भूल महसूस करेगा क्या? हार्दिक संबंधों में तर्क-वितर्क कभी For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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