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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है १७६ कुछ व्यवहारों का पालन करना आवश्यक हो सकता है, परंतु व्यवहारपालन का आग्रह कोई महत्त्व नहीं रखता है। तूने लिखा कि 'आपने मुझे मधुरभाषी बनने की प्रेरणा दी परंतु व्यवहार में मधुरभाषी बने रहना मुश्किल है... व्यवहार में तो स्पष्टभाषी बनना ही पड़ता है...।' तू स्पष्टभाषी बना रहे, इससे मुझे कोई नाराजगी नहीं है, परंतु तेरी स्पष्टभाषिता ने तेरे व्यक्तित्व को कटु तो नहीं बना दिया है न? 'मैं स्पष्टभाषी हूँ, किसी की शर्म मुझे नहीं छूती है... इस प्रकार का अहंकार तो तेरे ऊपर सवार नहीं हुआ है न? तू स्वस्थता से आन्तरनिरीक्षण करना। स्पष्ट बात करना या अस्पष्ट बात करना, यह महत्त्वपूर्ण नहीं है, महत्त्वपूर्ण बात तो है दूसरे को अपनी अच्छी बात समझा देना! अपनी बात दूसरे के मन में ऊँचा देना! यदि अस्पष्ट बात करने से यानी 'इनडायरेक्ट' बात करने से दूसरे को बात जंच जाती है तो स्पष्ट बात करने से क्या फायदा? दूसरी बात, स्पष्ट बात करते समय तेरी आवाज में कटुता या उग्रता तो नहीं आती है न? यदि कटुता और उग्रता के बिना स्पष्ट बात... साफ-साफ बात कर सकता है तो खुशी के साथ स्पष्ट बात करना! परंतु तेरे लिये यह असंभव बात है। तेरी छोटी बहन कहती थी कि बड़े भैया तो मम्मी को भी साफ-साफ सुना दिया करते हैं... मम्मी चुप हो जाती है... और छिपकर रो लेती है। भैया की बात सही होती है, परंतु इस प्रकार वे बात करते हैं... कि किसी को उनकी बात पसन्द नहीं आती।' तू यह मत समझना कि तेरी छोटी बहन शिकायत कर रही थी! तू जानता है कि उसका तुम्हारे प्रति कितना अपार स्नेह है! वह यह चाहती है कि घर में बड़े भैया के प्रति सब के मन में आदर हो- प्रेम हो! यदि तू स्पष्टवादिता का आग्रह छोड़ दे और तेरी भाषा में मृदुता और नम्रता को मिला दे, तो तू परिवार में आदर पायेगा, समाज में सम्माननीय बनेगा। तेरी अच्छी बातें सब लोग प्रेम से सुनेंगे। मैं जानता हूँ कि कुछ लोग तेरी प्रशंसा करते हैं । 'यह सब बात साफ-साफ करता है। किसी की लाग-लपेट नहीं रखता है... खूब स्पष्टभाषी है।' तू भी कभी अपनी प्रसंसा सुनकर खुश होता होगा! तू क्या, हमारे एक मुनिराज भी इस बात को लेकर खुश होते थे! आज भी खुश होते होंगे! सभी बातें साफ-साफ कह देने की उनकी आदत है! और गर्व भी है कि 'मैं स्पष्ट भाषी हूँ। किसी की परवाह नहीं करता!' परिणाम क्या? कुछ शिष्य उनको छोड़कर चले गये! संघ-समाज में उनका कोई आदरपात्र विशिष्ट For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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