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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है १७२ संसार के क्षणिक प्रश्नों में, अल्पकालीन समस्याओं में उलझना नहीं है। मन पर ये प्रश्न... ये समस्याएँ 'हावी' नहीं हो जानी चाहिए। जब तक जीवात्मा अच्छे-बुरे कर्मों से आक्रान्त है, तब तक जीवन में छोटे-बड़े प्रश्न पैदा हो सकते हैं... फिर वह गृहस्थ हो या गृहत्यागी हो! क्षुल्लक व्यवहार की बातों को महत्त्व नहीं देना चाहिए। एक श्रीमंत सद्गृहस्थ की आंतरिक परिस्थिति जानने को मिली। आज तो उसके पास करोड़ों रुपये हैं, बंगले हैं, अच्छा परिवार है परंतु उसने बताया कि एक दिन ऐसा आया था उसके जीवन में कि एक ओर उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई, दूसरी ओर उसकी संपत्ति नष्ट हो गई... मित्र- स्वजन वगैरह विमुख हो गये परन्तु इस परिवर्तन का उसके मन पर कोई बुरा असर नहीं हुआ! चूँकि ज्ञानीपुरुषों के परिचय से और श्रेष्ठ धर्मग्रन्थों के अध्ययनपरिशीलन से संसार की परिवर्तनशीलता का उसे ज्ञान था । उसने अपना गाँव छोड़ दिया...' लोग क्या कहेंगे, मेरी निन्दा होगी...' वगैरह विकल्प उसने नहीं किये। वह चला गया... उसने अपनी धर्म-आराधना नहीं छोड़ी। मौन धारण करके वह अपनी आजीविका कमाने लगा... | मन में संसार के स्वरूप का चिन्तन करता है... परमात्म स्वरूप का ध्यान करता है। फिर एक दिन भाग्योदय हुआ। एक श्रीमंत व्यापारी ने इसको काम दिया...। धीरे-धीरे उसने लाखों रुपये कमा लिये... पुनः वह अपने गाँव आया। एक सुशील कन्या से उसकी शादी हुई और नगर का प्रतिष्ठित नागरिक बन गया। पुनः श्रीमंत होने पर भी उसने अपना धर्मपुरुषार्थ नहीं छोड़ा है। धर्मग्रन्थों का अध्ययन-मनन-चिन्तन करता रहता है । आज सारे संयोग अनुकूल हैं फिर भी वह जागृत है! आत्मा का विशुद्ध स्वरूप प्राप्त करने के लिये उसका प्रयत्न चालू है। प्रिय मुमुक्षु ! जीवन जीने की यह दिव्य दृष्टि है। अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थिति में अपने आप स्वस्थ रहना... कोई व्याकुलता नहीं... कोई फरियाद नहीं.... कोई रूदन नहीं-विलाप नहीं । गृहस्थजीवन हो या साधुजीवन हो, यह जीवनदृष्टि होना सभी के लिये अनिवार्य है, यदि मोक्षमार्ग पर चलना है तो ! यदि प्रसन्न और पवित्र जीवन जीना है तो ! जिनके पास यह दिव्य जीवनदृष्टि नहीं है, वैसे कई गृहस्थ... जो कि मंदिर में जाते हैं, धर्मगुरुओं का उपदेश सुनते हैं, घोर अशान्ति और तीव्र For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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