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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है १५० तूफान खड़ा नहीं हुआ, कोई भय... चिन्ता या रोष पैदा नहीं हुआ! चूंकि परमात्मश्रद्धा उसके हृदय में थी। तत्त्वज्ञान उसके हृदय में था। श्रद्धा एवं ज्ञान के सहारे उसने प्रतिकूल परिस्थिति को स्वीकार कर लिया और शांत मन से उपचार भी कर लिया! परिस्थिति चन्द दिनों में बदल गई! जहाँ दुःख का हुताशन सुलगता था वहाँ सुख का सागर लहराने लगा। यह कहानी अपने जैन समाज में सुपरिचित है। इस कहानी का एक महाकाव्य गुजराती भाषा में भी है! 'श्रीपालरास' के नाम से प्रसिद्ध है। मनुष्य के संघर्षमय जीवन में ऐसी कहानियाँ अत्यंत मार्गदर्शक और सत्त्वप्रेरक बन सकती हैं। परंतु इस दृष्टि से पढ़े तो न! मात्र मनोरंजन के लिए पढ़ने से अभिनव दृष्टि प्राप्त नहीं होती है। यदि फुरसत का समय व्यतीत करने की दृष्टि से पढ़ें, तो भी कहानी का हार्द और कथनीय तत्त्व हाथ नहीं लगता है। किसी भी धर्मग्रन्थ का अध्ययन, चिन्तनरहित और अनुप्रेक्षारहित होता है, तो मात्र शाब्दिक ज्ञान प्राप्त होता है, उसका रहस्य प्राप्त नहीं होता है, उसका तत्त्व प्राप्त नहीं होता है। हालाँकि आजकल समाज में धर्मग्रन्थों का अध्ययन बहुत ही कम लोग करते हैं। राग-द्वेष और मोह की उत्तेजना पैदा करने वाली किताबों का धड़ल्ले से पठन हो रहा है। तुझे तत्त्वज्ञान का रस है। नया-नया तत्त्वज्ञान पाने का प्रयत्न करते रहना। मन की और तन की दुविधाएँ समाप्त हो जाएंगी। मन स्वस्थ बना रहेगा, प्रशमभाव में लीन बना रहेगा । अनुकूल-प्रतिकूल संयोगों में 'कार्यकारणभाव' का ज्ञान होता रहेगा, इससे मानसिक समाधान मिलता रहेगा। । इस वर्ष तीर्थस्थानों में स्थिरता करने के सुअवसर मिलते रहे हैं। यह पत्र मैं मेत्राणा तीर्थ से लिख रहा हूँ। एक सप्ताह की स्थिरता यहाँ हो गई! भगवान आदिनाथ का यह प्राचीन तीर्थ है। यहाँ शांति है, स्वच्छता है और सुविधाएँ हैं! यात्रियों का आवागमन बहुत ही कम है। अध्ययन-अध्यापन और लेखन-कार्य अच्छा हुआ | मन नहीं करता यहाँ से जाने का! फिर भी विहार तो करना ही होगा। 'चैत्री ओली' के नौ दिन 'डीसा' में बिताएँगे। वैशाख शुक्लपक्ष में पालनपुर में 'जैन धार्मिक ज्ञानसत्र' लगेगा। इसलिए पालनपुर जाना होगा | ज्ञानसत्र में तरुणों का और युवकों का उत्तम जीवननिर्माण होता है। जैन धर्म के सिद्धान्तों की रूपरेखा विद्यार्थियों को दी जाती है। साथ For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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