SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है १४५ सावधान था। अपना गाँव वनस्थली छोड़ कर वह भाग निकला। अनेक गाँव, जंगल और पहाड़ों में भटकने लगा। अनेक कष्ट सहन किए | भटकता हुआ कुमारपाल अरावली के पहाड़ों में पहुँचा। भूखा प्यासा वह एक वृक्ष की छाया में विश्राम कर रहा है। सामने एक वृक्ष के नीचे उसने एक अजीब दृश्य देखा। एक चूहा अपने बिल से निकला, एक सोना मुहर उसके पास थी, बाहर छोड़कर पुनः अपने बिल में गया, दूसरी सोना मुहर ले आया! फिर बिल में गया, तीसरी सोना मुहर ले आया... इस प्रकार बत्तीस सोना मुहर ले आया... और नाचने लगा! कुमारपाल इस दृश्य को देखता है | उसके मन में विचार आया : 'ये सोना मुहरे इस चूहे के लिए किस काम की? मुझे अभी सख्त आवश्यकता है...' उसने तब सोना मुहरे उठा ली, जब चूहा अपने बिल में गया था। चूहा वापस बाहर आया, उसने अपनी सोना मुहरे नहीं देखी... सर पटकने लगा... और चंद क्षणों में वह सर पटक-पटक कर मर गया। कुमारपाल तो स्तब्ध रह गया... उसके हृदय में गहरा दुःख हुआ। चूहे को भी धन-संपत्ति की कितनी ममता? कितना प्रगाढ़ राग? समग्र जीवसृष्टि पर ममता कैसी छाई हुई है। ममता से ही संसार में जीव दु:खी है, ममतापरवशता से ही जीव दुर्गतियों में भटकते रहते हैं। कुमारपाल वहाँ से चल दिया, परंतु चूहे की करुण मृत्यु जो उसके निमित्त हुई थी, भूल नहीं सका | जब सिद्धराज की मृत्यु हुई और कुमारपाल गुजरात का राजा बना, तब भी चूहे को नहीं भूला | उसने गुरुदेव हेमचन्द्रसूरीश्वरजी को वह घटना सुनाई और पूछा : 'गुरुदेव, मेरे हृदय में आज भी वह दुष्कृत्य खटकता है, मेरे उस पाप का प्रायश्चित्त देने की कृपा करें। श्री हेमचन्द्रसूरिजी ने कुमारपाल को उस जगह कि जहाँ चूहे की मृत्यु हुई थी, भव्य जिनमंदिर बनाने का प्रायश्चित्त दिया । कुमारपाल ने प्रायश्चित्त को स्वीकार किया और इस उत्तुंग कलात्मक जिनमंदिर का निर्माण हो गया । आसमान से बात करते हुए जिनमंदिर से जब हम मौन बातें करते हैं, तब यह मंदिर बहुत बातें कहता है। ___ भव्य जिनमंदिर और भव्य जिनप्रतिमा! दूसरे तीर्थंकर भगवान अजितनाथ की विशालकाय प्रतिमा भक्त हृदय को भी खूब भा जाती है। मंदिर का बाह्य प्रदेश भी विशाल है। इतना बड़ा चौक किसी जगह देखने को नहीं मिला है। For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy