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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४२ जिंदगी इम्तिहान लेती है वास्तव में संसार मात्र कल्पना है। संसार मात्र भ्रमणा है। संसार मात्र अवास्तविकता है। वास्तविक है, मात्र अपनी आत्मा! शुद्ध,बुद्ध, मुक्त आत्मा ही वास्तविकता है। प्रिय मुमुक्षु! मात्र बुद्धि से मत सोचना | मात्र बुद्धि के सहारे जो कुछ सोचा जाता है, गलत सोचा जाता है। इससे अनेक विषमताएँ पैदा होती हैं, अनेक अनर्थ पैदा होते हैं। मात्र इन्द्रियों के माध्यम से बुद्धि सोचती है। अब शास्त्रज्ञान के सहारे सोचना होगा। बुद्धि का संबंध शास्त्रज्ञान से जोड़ना होगा। इसलिए तुझे अपना शास्त्रज्ञान कुछ बढ़ाना होगा। 'आत्मज्ञान' और 'कर्मज्ञान' विस्तृत करना होगा। इसलिए तू मेरे पास आओगे तो मैं सहायक बन सकूँगा। तेरे पास बुद्धि तो है, शास्त्रज्ञान भी तू पा सकेगा, परंतु यदि सम्मोह से मुक्त नहीं हो पाया, तो शास्त्रज्ञान व्यर्थ बन जाएगा, कोई काम का नहीं रहेगा तेरा शास्त्रज्ञान और तेरी तीक्ष्ण बुद्धि । सम्मोह नहीं चाहिए। यदि संसार को ज्ञानदृष्टि से देखेगा और सोचेगा तो सम्मोह नहीं रहेगा। सम्मोह चला गया कि तुझे अपूर्व आत्मानंद की अनुभूति होने लगेगी। तूने जिस घटना को अपने विषाद का कारण बताया है, वह घटना काल्पनिक संसार की मात्र एक काल्पनिक घटना है। ऐसा क्यों बना?' ऐसा तू पूछता है न? संसार में ऐसा सब कुछ बन सकता है। संसार में क्या नहीं बन सकता है, तू बताएगा? तूने उस घटना को दुर्घटना मान ली और वास्तविक मान ली, इसलिए तेरा मन विषाद से भर गया है। संसार की ऐसी घटनाओं को Hard & Fast मत लिया कर| खूब सहजता से सोचता रह | ज्ञानदृष्टि से विचारों में सहजता आएगी। अपने विचार ऐसे होने चाहए कि जिन विचारों से हम अशांत न हों, परेशान न हों। आत्मलक्षी शास्त्रज्ञान से विचारों में अवश्य परिवर्तन आता है। तुझे बार-बार 'ज्ञानदृष्टि' के विषय में लिखता हूँ, क्यों? जानता है? ज्ञानदृष्टि से आन्तर आनंद बना रहता है। ज्ञानदृष्टि से ही आँखें करुणा से आर्द्र बनी रहती हैं। ज्ञानदृष्टि से ही हृदय गुण पुष्पों की सौरभ से सुवासित बना रहता है। मैं मानता हूँ कि अब जो तेरा पत्र आएगा, उसमें तेरी भीतरी प्रसन्नता की अभिव्यक्ति होगी। हमारी विहारयात्रा की दिशा ही बदल गई। कुंभारिया से जाना था For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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