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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है १३५ संपर्क से अनेक सामाजिक दूषण हमारे जीवन में प्रविष्ट हो गए हैं। बहुत अधिक जनसंपर्क ने हमारा ध्यानमार्ग अवरुद्ध कर दिया है। मात्र थोड़ा-सा शास्त्रज्ञान पाकर ही हम लोगों ने कृतकृत्यता मान ली है। कहाँ है आत्मज्ञान? कहाँ है अनुभवज्ञान और कहाँ है तत्त्वपरिणति ज्ञान? ज्ञान ही नहीं है तो ध्यान में प्रवेश होगा कैसे? हे परमात्मन्! कब ऐसा श्रमणजीवन मिलेगा कि जिस जीवन को मैं ऐसी गुफाओं में... ध्यानमग्न बनकर... दिव्य आत्मानुभूति करूँ? ऐसी गुफाओं में निःसंग और अनासक्त बन कर परमानंद का अगोचर अनुभव करूँ? इस दुनिया से संपूर्ण निरपेक्ष बनकर... संपूर्ण जीवन निर्मल चारित्र की आराधना में व्यतीत करूँ? प्रिय मुमुक्षु! नीचे उपाश्रय में आने के बाद... शाम को और रात को... बस, ये ही विचार दिमाग में घूमते रहे। इसी जीवन में कभी न कभी कुछ समय ऐसी गिरि-गुफाओं में व्यतीत कर, आत्मध्यान की आराधना करने की आन्तर भावना तो कई वर्षों से बनी हुई थी... इसमें इडर के पहाड़ों की सफर ने उस भावना को उत्तेजित कर दी। मेरा दृढ़ विश्वास है कि ध्यान के अश्व पर आरूढ़ हुए बिना तीव्र और शीघ्र गति से निर्वाण की ओर आगे नहीं बढ़ा जा सकेगा। इडर की यह यात्रा स्मृति में ऐसी अंकित हो गई है कि कभी भूल नहीं सकूँगा। इडर से हम वडाली आए हैं | वडाली से ही यह पत्र लिख रहा हूँ| कुछ दिन यहाँ स्थिरता कर, खेडब्रह्मा, मोटापोशीना होते हुए कुंभारियाजी तीर्थ में पहुँचने की भावना है। उस प्राचीन भव्य तीर्थभूमि में कुछ दिन रुकने की भावना है और वहाँ से राजस्थान की धरती को स्पर्श करने को मन चाहता है... आगे जैसी क्षेत्रस्पर्शना! वडाली २४-१२-७८ - प्रियदर्शन For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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