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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है १२१ प्रिय मुमुक्षु ! धर्म का मूलभूत तत्त्व निरपेक्ष प्रेम है। किसी भी जीवात्मा के प्रति द्वेष नहीं, तिरस्कार नहीं! कभी हो जाय द्वेष, तो शीघ्र ही क्षमायाचना कर, द्वेष की आग को बुझा देना । तुझे दुःख देने वालों के प्रति, तेरा विनाश करने वालों के प्रति भी अपने हृदय में द्वेष नहीं रखना । यदि तेरी चेतना थोड़ी भी जागृत है, तो तेरा हृदय द्वेषमुक्त बनेगा ही। अभी थोड़े दिन पूर्व मैंने एक रशियन कवि ‘येवतुशेन्को' द्वारा लिखी गई एक घटना पढ़ी। दूसरे विश्वयुद्ध के समय की वह घटना है । कवि येवतुशेन्को के शब्दों में ही यह घटना लिखता हूँ : 'मुझे वह पुरानी बात याद आ गई । तब मैं ७-८ साल का बच्चा था । उस समय मेरी माँ ‘फ्रन्ट' पर नहीं गई थी। यह शायद १९४१ की बात है। उन दिनों में जब मैं जर्मन सैनिकों के मौत के समाचार सुनता था तब मुझे बड़ी खुशी होती थी, परंतु एक दिन मैंने करीबन २० हजार जर्मन कैदी सैनिकों को लाइन में ‘मॉस्को' की सड़क पर गुजरते देखा। वे जर्मन कैदी हमारे रशियन सैनिकों के घेरे में चल रहे थे। राजमार्ग के दोनों ओर दर्शकों की भीड़ जम गई थी। दर्शकों में ज़्यादातर रशियन महिलाएँ ही थी । इन महिलाओं के हाथ थके हुए थे। युद्ध के भार से और दुःख से उनकी कमरें झुकी हुई थी। सिंगार तो वे भूल ही गई थी। वर्षों से उन महिलाओं ने अपने होठों पर ‘लिपस्टिक' भी नहीं लगाई थी । किसी के पिता, किसी का पुत्र, किसी का पति, इन जर्मन सैनिकों के हाथों मारा गया था । वे सब औरतें क्रोध और भयंकर घृणा से जल रही थी । वे सब जर्मन सैनिकों पर गालियाँ बरसा रही थी। सबसे आगे रशियन सैनिक चल रहे थे, उनके बाद जब जर्मन सैनिक गुजरते थे, क्या पता ... रशियन महिलाओं में एकाएक कैसा परिवर्तन आ गया! जर्मन सैनिकों को देखते-देखते वे सब मौन हो गई। सारे राजमार्ग पर स्तब्धता छा गई। मेरे देश की माताओं ने और बहनों ने तब देखा कि जर्मन सैनिकों की दाढ़ी बढ़ गई थी... वे सब दुबले-पतले हो गए थे। वे सब घायल बने हुए थे । उनके वस्त्र फटे हुए थे। शर्म से उनके चेहरे लटक गए थे। सिवाय उनके बूट की आवाज, सारे राजमार्ग पर सन्नाटा छा गया था। इतने में मैंने देखा एक रूसी महिला, रशियन सैनिकों का घेरा तोड़कर, एक जर्मन सैनिक के पास पहुँच गई। उसने अपने सुन्दर रूमाल में बंधा हुआ For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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