SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ जिंदगी इम्तिहान लेती है हैं? ऐसा विचार करने से अभिमान नहीं आता? मुझे ऐसा विचार करना चाहिए क्या? मेरी मनःस्थिति से आप परिचित हैं। विचार अच्छा तो है परंतु अपूर्ण है! मूल स्वरूप में मेरी आत्मा परमात्मा है, वर्तमान में... अनादिकाल से मेरी आत्मा कर्मों के बंधनों से मलीन है... यदि मैं कर्मों के बंधन तोड़ दूँ तो परमात्म-स्वरूप प्रगट हो सकता है। 'ज्ञानसार' ग्रन्थ में कहा गया है कि 'शुद्धात्मद्रव्यमेवाह' मैं शुद्ध आत्मद्रव्य हूँ - इस विचार से पुनः-पुनः भावित होना चाहिए | अपने मूल - 'ओरिजिनल स्वरूप का ज्ञान अपने धर्मपुरुषार्थ में प्रेरक बनता है। ___ अपने लोगों में आत्मा की विभावदशा का ज्ञान तो है, स्वभाव दशा का इतना ही अज्ञान है! विभावदशा का ज्ञान कर्मग्रन्थों के अध्ययन से प्राप्त होता है और कुछ लोग प्राप्त करते भी हैं, परंतु स्वभावदशा का ज्ञान जिन ग्रन्थों में से मिलता है, वे ग्रन्थ लोग पढ़ते ही नहीं! 'मेरा वास्तविक स्वरूप ऐसा ज्ञानमय है, ऐसा गुणमय है', यह जानने से वैसा स्वरूप प्राप्त करने की तमन्ना पैदा होती है। कर्मजन्य सुखों से आत्मा का अपना सुख बहुत ज़्यादा है, शाश्वत है, अविनाशी है-यह जानने से अनित्य और नाशवंत सुखों की तृष्णा कम होती है। तू शुद्ध आत्मस्वरूप का ध्यान कर सकता है। कर्मरहित शुद्ध आत्मद्रव्य का चिन्तन करने से तेरी आध्यात्मिक प्रगति अच्छी होगी। आन्तर आनंद में अभिवृद्धि होगी। परंतु शुद्ध आत्मस्वरूप का ज्ञान अच्छी तरह प्राप्त कर लेना। ज्ञान के बिना ध्यान नहीं हो सकता | शुद्ध आत्मस्वरूप का ज्ञान गहराई में प्राप्त करना होगा। कैसे प्राप्त करेगा। यदि थोड़ा समय निकाल कर मेरे पास आ जाये तो? अभी कुछ दिन यहाँ रुकने का है | यदि तू आता हो तो दूसरे जिज्ञासु भी यहाँ आ सकते हैं और सबको इस विषय में मार्गदर्शन मिल सकता है। ___ अभी तो यहाँ अंजनशलाका-प्रतिष्ठा का महोत्सव शुरू होगा। परमात्मभक्ति का खूब अच्छा आयोजन हुआ है। अनेक साधु पुरुष भी यहाँ पधारे हैं। महोत्सव में आएगा तो प्रभुभक्ति का अवसर मिलेगा, बाद में अनुकूलता हो तो बाद में भी आ सकता है। तेरे तीन प्रश्नों का संक्षिप्त प्रत्युत्तर लिखा है। आत्मा में परमात्मस्वरूप का ध्यान करने की प्रक्रिया, मैं रूबरू बताऊँगा। प्रक्रिया बहुत अच्छी है, तू कर सकेगा। __ स्वास्थ्य अच्छा है। सारे कार्यकलाप सुचारु रूप से चल रहे हैं। तेरी कुशलता चाहता हूँ। - प्रियदर्शन For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy