SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रवचन- ८१ ● गृहस्थ जीवन जोना और अर्थ काम को उपेक्षा कर देना यह अनुचित है। अलबत्ता, अर्थ- काम को आसक्ति नहीं होनी चाहिए... पर परिवार के पालन व पोषण के लिए अर्थपुरुषार्थ भी करना तो होगा हो । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ● श्रीमन्तों के बाहरी 'पोम्प एन्ड शो' को देखकर होन ग्रन्थि से मर मत जाओ! उनके भीतर में जरा देखो ... व्यसन और विकृतियों से वे भी पागल हुए जा रहे हैं! ● अर्थ और काम के जरिये बाहरी तौर पर आप श्रीमन्त रहेंगे... पर भीतरी श्रीमन्ताई तो आपको धर्म से ही मिलेगी ! ● किसी भी कीमत पर धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए! धर्म बचेगा तो सब कुछ सलामत लौट सकेगा। धर्म नहीं तो कुछ भी नहीं! प्रवचन: ८१ ८६ परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर आचार्यदेवश्री हरिभद्रसूरिजी स्वरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों का प्रतिपादन करते हुए २५वाँ सामान्य धर्म बताते हैं धर्म-अर्थ और काम के सेवन में औचित्यपालन का। धर्म-अर्थ-काम को उन्होंने 'त्रिवर्ग' की संज्ञा दी है । ग्रन्थकार का कहना है कि त्रिवर्ग के सेवन में, एक का सेवन करते हुए दूसरे दो का व्याघात नहीं होना चाहिए। तीनों का परस्पर सामंजस्य बनाये रखना चाहिए । 1 70 ● धर्म का पालन इस प्रकार करना चाहिए कि अर्थपुरुषार्थ को और कामपुरुषार्थ को बाधा नहीं पहुँचे । For Private And Personal Use Only ● अर्थपुरुषार्थ इस प्रकार करना चाहिए कि धर्मपुरुषार्थ और कामपुरुषार्थ को बाधा नहीं पहुँचे। • कामपुरुषार्थ इस प्रकार करना चाहिए कि धर्मपुरुषार्थ और अर्थपुरुषार्थ को बाधा नहीं पहुँचे। आज का मनुष्य एकांगी बन रहा है : गृहस्थ जीवन जीने की शिक्षा इस दृष्टि से मिलनी चाहिए। आज ऐसी
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy