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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-८० ८३ नुकसान करनेवाली है। 'कामपुरुषार्थ' में कामुकता का समावेश नहीं हो सकता है। जिसके जीवन में धर्मपुरुषार्थ होगा वह व्यक्ति यौन-संबंध में संयम रखेगा। कामपुरुषार्थ में संयम और सदाचार को महत्त्व देना चाहिए। जो लोग कामुक होते हैं, वे लोग अति विषयासक्त होते हैं...उनमें नहीं होता है संयम, नहीं होता है सदाचार-पालन। ऐसे लोग धर्मपुरुषार्थ और अर्थपुरुषार्थ की उपेक्षा ही करते होते हैं। इन दिनों कामुकता निःसंदेह बढ़ रही है। उसे बीभत्स साहित्य और फिल्मों ने विशेष रूप से उत्तेजित किया है। वैसे क्लब और सोसायटियाँ भी आग में घी का काम करती हैं। कामुकता के विचारों में निरंतर निरत रहनेवाले लोग, शारीरिक दृष्टि से रतिकर्म के लिए उपयुक्त क्षमता नहीं बनाये रखते हैं। ऐसे अति कामुक मनुष्य नपुंसकता की ओर बढ़ रहे हैं। अति कामुकता के परिणाम : प्रजनन विशेषज्ञ डॉ. जौन मैक्लाइड की गणना के अनुसार, स्वस्थ मनुष्य के एक मिलीमीटर वीर्य में १ करोड ७० लाख शुक्राणु होने चाहिए | पर इन दिनों औसत घटकर ६०/७० लाख से अधिक नहीं पाये जाते हैं। किसी-किसी क्षेत्र में तो उनकी संख्या और भी कम होकर ४० लाख से भी कम रह गई है। इसका प्रभाव न केवल प्रजनन पर पड़ता है, वरन् शारीरिक अक्षमता के रूप में भी देखा जाता है। शुक्राणुओं की कमी के कारण, सन्ताने दुर्बल, निस्तेज और आलसी होती जाती हैं। जवानी में बुढ़ापा घिर आने का क्या कारण है? यही... अति कामुकता। अति कामुक मनुष्य का पौरुष घटता जाता है। इससे मनुष्य की कर्मशीलता, स्फूर्ति, तत्परता, दक्षता घटती जाती है। पौरुषहीन मनुष्य, बूढ़ों की तरह, अपनी घटी हुई क्षमता के कारण, इच्छा होने पर भी, बड़ा पराक्रम किसी भी क्षेत्र में नहीं कर पाता। ___ अति कामुक स्त्री-पुरुषों की सन्तानें प्रखर व्यक्तित्ववाली एवं संयमीसदाचारी प्रायः नहीं होती हैं। यदि आपको अपनी सन्ताने सुशील चाहिए, सदाचारी, बुद्धिमान, तेजस्वी और पराक्रमी चाहिए तो आप कामुकता से बचो। अश्लील चिन्तन करना बन्द करो। उच्चस्तरीय सज्जनों का सान्निध्य प्राप्त करें| तीर्थसेवन करें और शास्त्रस्वाध्याय को जीवन में स्थान दें। वातावरण का असर मनुष्य पर पड़ता ही है। For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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