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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७ प्रवचन-७८ घटिका पर्यंत सुनते रहे...| उनको वह आगम सूत्र बहुत प्रिय लगा। उन्होंने गुरुदेव से पूछा : ___ 'गुरुदेव, यह कौन-सा सूत्र है, कि जिसमें पुनःपुनः ‘गौतम' शब्द आता है?' भगवती-सूत्र का श्रवण : __ गुरुदेव ने कहा : 'महानुभाव, यह पाँचवा आगम-सूत्र 'भगवती' है। सभी आगमों में यह श्रेष्ठ आगम-सूत्र है। श्री गौतम गणधर ने भगवान महावीर स्वामी को ३६ हजार प्रश्न किये थे और भगवान ने स्वमुख से, गौतम स्वामी को संबोधित कर, प्रत्युत्तर दिये थे। इसलिए इस आगम-सूत्र में ३६ हजार दफे 'गौतम' नाम आता है। इसका मूल नाम 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' है।' ___ पेथड़शाह ने दूसरा प्रश्न किया : 'गुरुदेव, ये मुनिराज तो सूत्रपाठ ही करते जाते हैं...दूसरे सुनते जाते हैं...इसके अर्थ क्यों नहीं बताये जाते?' गुरुदेव ने कहा : 'जो मुनिराज आगम-सूत्र सुन रहे हैं, उनकी क्षमता नहीं है भगवती-सूत्र का अर्थ-भावार्थ समझने की। उन्हें इस सूत्र को पढ़ने की - ग्रहण करने की योग्यता पाने के लिए, 'योगोद्वहन' की आराधना करने की होती है। इसलिए उनको सिर्फ 'मूल सूत्र' ही दिये जाते हैं। जो साधु तपश्चर्या के साथ इन आगम-सूत्रों को पढ़ता है, पढ़ाता है, सुनता है, लिखता है, लिखवाता है...वह सर्वज्ञत्व पाता है। आगम-सूत्रों की भावपूर्वक भक्ति करने से अपूर्व कर्मनिर्जरा होती है।' जिनागमों के श्रवण-अध्ययन-अध्यापन की ऐसी महिमा सुनकर पेथड़शाह के हृदय में जिनागमों के प्रति प्रीति-भक्ति पैदा हुई। उन्होंने गुरुदेव से पूछा : 'प्रभो, क्या मैं श्री भगवती-सूत्र' सुन सकता हूँ?' 'महानुभाव, क्यों नहीं? श्रावक-श्राविकाओं को जिनागम सुनने का अधिकार है।' ___ 'गुरुदेव, मैं भी केवल सूत्रपाठ ही सुनना चाहता हूँ| अर्थसहित सुनने के लिए तो बहुत दिन चाहिए। अभी ज्यादा समय है नहीं...राज्य की प्रवृत्तियों में व्यस्त हूँ। गणधर भगवंत के वचन सुनने का सौभाग्य मिल जाय...।' 'महामंत्री, मैं इन मुनिराज को कहता हूँ, वे तुम्हें भगवती-सूत्र आदि से अन्त तक सुनायेंगे। तुम कल से यहाँ आया करो।' For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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