SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हावा प्रवचन-७८ - संयोग या पुण्योदय प्राप्त होने से क्या? यदि हम पुरुषार्थ- नहीं करेंगे तो आत्मविशुद्धि की यात्रा आरंभ नहीं होगी। जीवनशुद्धि की प्रक्रिया शुरू नहीं होगी। ० शुद्ध-अशुद्ध, असली-नकली पहचानने की क्षमता पैदा करनी होगी... कम-से-कम धर्म की बाबत में तो अत्यंत जरूरी है यह। ० पेथड़शाह ने कितनी अद्भुत धर्मशासन को प्रभावना की थी? उनका व्यक्तिगत जीवन भी उतना ही आराधनापूर्ण था। ० जिनागम-जिनवाणी का श्रवण महान् पुण्योदय से प्राप्त होता है। पेथड़शाह ने 'भगवती-सूत्र' का श्रवण गुरुमुख से कैसे किया था, जानते हो? ० आत्मचिंतन कोई बहुत ज्यादा कठिन नहीं है... सरल है। बस भीतर में मुड़ना सीखें... आत्मा में देखना सीखें। ० सत्संग का रंग बड़ा गहरा होता है। एक बार बस, लग जाना चाहिए! =० संत समागम सदा सुखकारी।' rel प्रवचन : ७८ Leo परम कृपानिधि, महान् श्रुतधर आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी, स्वरचित 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में, गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों का प्रतिपादन करते हुए चौबीसवाँ धर्म बताते हैं - व्रतधारी और ज्ञानी महापुरुषों की सेवा। ___ महाव्रतों से जिन्होंने अपनी आत्मा को अनुशासित किया हो और शास्त्रज्ञान एवं आत्मज्ञान से जिन्होंने दिव्यदृष्टि प्राप्त की हो, वैसे महापुरुषों का योग-संयोग मिलना सरल नहीं है। महान् भाग्योदय हो, तब ही ऐसा संयोग मिलता है। संयोग भी, पुरुषार्थ भी : संयोग प्राप्त होता है पुण्यकर्म के उदय से, संयोग का लाभ उठाया जाता है आत्मजाग्रति से । संयोग तो कभी तीर्थंकर भगवंत का भी मिल जाय, परन्तु आत्मा जाग्रत नहीं हो, मोहनिद्रा में पड़ी हो, तो संयोग का लाभ नहीं उठा For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy