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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३० प्रवचन-७५ ० किसी की निन्दा नहीं करता है, ० किसी के ऊपर आरोप नहीं लगाता है, ० गुणवान् स्त्री-पुरुषों की प्रशंसा करता है, ० दूसरों का सुख देखकर जलता नहीं है, खुश होता है, ० परमात्मा एवं सद्गुरुओं की स्तवना करता है। यह सब करने से 'यश-कीर्ति नामकर्म' बंधता है। लोकयात्रा में भी ये बातें बहुत उपयोगी हैं। क्या आप लोग इन बातों का पालन नहीं कर सकते? कर सकते हो... यदि मन में द्रढ़ निर्णय कर लो तो मुश्किल नहीं है। सफल जीवन जीने के लिए, आप लोगों को अपने जीवन में कुछ परिवर्तन करना ही होगा। दूसरों की निन्दा करने की आदत छोड़नी होगी। निन्दा करने का रस छोड़ना होगा। और, दूसरी बात, अपनी निन्दा सुनकर चंचल नहीं होने का। अपनी निन्दा सुनकर चंचल हो जाते हो न? अस्वस्थ और चिंतित हो जाते हो न? ___ सभा में से : सच बात है। निन्दा सुनते ही, निन्दा करनेवालों के प्रति गुस्सा आ जाता है। ___ महाराजश्री : चूँकि सहनशीलता नहीं है। हर बात का प्रतिकार करने को तैयार मत हो जाओ, कुछ सहन करना भी लाभदायी होता है। कोई आपकी बुराई करता है, इतने से आप बुरे नहीं बन जाते । 'लोग क्यों मेरी बुराई करते हैं?' यह सोचो। यदि आपको अपनी कोई गलती दिखाई दे तो उस गलती को दूर करो। गलती न हो तो निश्चित बने रहो। पहल आप स्वयं करें : आप किसी की भी निन्दा नहीं करेंगे तो प्रायः कोई आपकी निन्दा नहीं करेगा। आप गुणवानों की प्रशंसा करते रहेंगे तो आपकी भी प्रशंसा होगी। आप दूसरों के सुख-वैभव की ईर्ष्या नहीं करेंगे तो दूसरे लोग भी आपके सुखवैभवों की प्रायः ईर्ष्या नहीं करेंगे। दूसरे यदि करते हैं ईर्ष्या, तो भी आप निश्चित रहें। आप अपने सुख को थोड़ा थोड़ा बाँटते रहें। ० आप यदि उदार होंगे, ० आप यदि शीलवान् होंगे, ० आप यदि विनम्र-विनयी होंगे, For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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