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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-७५ _ २८ है। उसके हृदय का परिवर्तन हो गया है। उसने सभी किसानों से जमीन का किराया लेना बंद कर दिया है...। अब मुझे उससे दुश्मनी नहीं रखनी चाहिए।' ___ गुल्ला का हृदय-परिवर्तन हुआ | गाँव के लोग इकट्ठे हुए | गुल्ला ने लोगों से कहा : 'अय्यु ने हम सबको महान् क्षमादान दिया है। वह चाहता तो हम सबको जेल भिजवा सकता था... लेकिन उसने वैसा नहीं किया । अय्यु महान् है। हमने उसके घर को लूटा और जलाया... अब हमारा पहला फर्ज यह है कि उसको नया घर बना के दें।' गाँव के सभी किसान गुल्ला की बात से सहमत हुए। सब अपने-अपने घर गये। उसी रात वर्षा हुई। मूसलाधार वर्षा हुई। नदी पर जो बाँध बँधा हुआ था, टूट गया। रात्रि का घनघोर अंधकार था। बाँध टूटने का धमाका सारे गाँव ने सुना । लोग अपने घरों से बाहर निकल आये। सब जानते थे कि 'बाँध के पास ही अय्यु का मकान है। मकान में पानी भर गया होगा। मकान गिर गया होगा...। क्या हुआ होगा अय्यु-परिवार का?' सबके हृदय में अय्युपरिवार के प्रति गहरी हमदर्दी पैदा हुई। गुल्ला ने कहा : 'किसी भी तरह अय्यु-परिवार को बचा लेना चाहिए | मैं जाऊँगा... बाँस की नैया लेकर जाता हूँ। आप सब भगवान से प्रार्थना करें कि अय्यु-परिवार कुशल हों...।' गुल्ला ने बाँस की नैया ली और अय्यु के घर की ओर चल पड़ा | पानी का प्रवाह तीव्र था। उल्टे प्रवाह में जाना था। परन्तु गुल्ला के हृदय में अय्यु के प्रति अथाह मैत्रीभाव उमड़ रहा था...। जान की बाजी लगा दी उसने। __ उधर, अय्यु दो दिन से शहर गया हुआ था। घर में अय्यु की पत्नी और दो बालक थे। घर में पानी भर जाने से, वे लोग मकान की छत पर चढ़ गये थे। असहाय स्थिति में वे भगवान का स्मरण करते थे। सहायता के लिए जोरजोर से चिल्ला रहे थे। दूर से, अय्यु की पत्नी ने किसी को बाँस की नैया पर आता हुआ देखा। उसकी आँखों में हर्ष के आँसू भर आये। गुल्ला वहाँ पहुँच गया । अय्यु की पत्नी ने गुल्ला को देखा, वह सहम गई। गुल्ला ने कहा : 'बहन, मैं दोस्त हूँ, दुश्मन नहीं... आ जाओ, बैठ जाओ इस नाव में । मुझे अपने उपकारी साहूकार के उपकारों का बदला चुकाने दो...।' ___ अय्यु के परिवार को लेकर गुल्ला जब किनारे पर आया तब अय्यु भी वहाँ पहुँच गया था। अय्यु ने अपने परिवार को सलामत पाया । अय्यु की पत्नी ने कहा : 'हम गुल्ला का एहसान कभी भी नहीं भूल सकेंगे। अपने प्राणों की बाजी लगाकर उसने हमें बचा लिया है।' For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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