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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-७५ २५ वह अय्यु के घर से निकल गई और नदी के किनारे पहुंची। पानी में कूद पड़ी। पानी गहरा था... उधर, अय्यु भी अपने नदी पार के बंगले में जाने के लिए निकला था। उसने नदी में डूबती हुई स्त्री को देखा...। वो तुरन्त पानी में कूद पड़ा और गुल्ला की पत्नी को बचा लाया । किनारे पर अनेक किसान इकट्ठे हो गये थे... गुल्ला भी आ गया था । अय्यु ने गुल्ला के हाथों में उसकी पत्नी को सौंप दिया। उस समय गुल्ला अपनी पत्नी से कहता है : अय्यु का मन बदला : 'तू मर जाती तो मुझे इतना दुःख नहीं होता, जितना दुःख इस दुष्ट के हाथ तू बच गई, इससे मुझे हुआ है।' गुल्ला उसकी पत्नी के साथ अपने घर चला गया, परन्तु अय्यु के मन पर इन शब्दों का गहरा प्रभाव पड़ा। अय्यु ने सोचा : 'गुल्ला ने ऐसा क्यों कहा? गुल्ला मेरे साथ वैर क्यों रखता है? मेरे पिताजी ने उसके पिता पर और उसके ऊपर बहुत अत्याचार किये थे। सभी किसानों के साथ दुर्व्यवहार किया था। हमेशा झगड़े चलते हैं। घृणा से घृणा ही बढ़ती है। अब मुझे किसी से झगड़ा नहीं करना है। सबके साथ मैत्रीभाव से जीना है। द्वेष की परम्परा नहीं चलानी है। मेरे पास लाखों रुपये हैं, अब किसानों से जमीन का किराया भी नहीं लेना है।' सारे गाँव में मालूम हो गया कि 'साहूकार आज से जमीन का किराया नहीं लेगा। किसान लोग खुश हो गये। दूसरे दिन, गुल्ला के घर के आगे, वकील पुलिस के साथ आ पहुँचा | घर को नीलाम करने की धमकी देने लगा। बहुत से किसान इकट्ठे हो गये। अय्यु को भी समाचार मिले...। उसने कुछ क्षण सोचा और गुल्ला के घर पहुंचा। वकील से पूछा : 'क्या बात है? क्यों आये हो?' वकील ने बात बताई। अय्यु ने रुपये दे दिये | गुल्ला ने बहुत मना किया : 'मुझे तुम्हारा दान नहीं चाहिए... मेरा घर चला जाय तो चला जाय.... मुझे तेरा उपकार नहीं चाहिए।' अय्यु ने कहा : 'मैं तुझ पर उपकार नहीं कर रहा हूँ, दान भी नहीं दे रहा हूँ। तू मेरे घर पर नौकरी कर लेना...।' ___ गुल्ला ने अय्यु के वहाँ प्रामाणिकता से नौकरी कर ली। नौकरी करके पैसे चुका दिये। गाँव का वातावरण अच्छा बन गया था। किसी भी किसान के मन में अय्यु के प्रति रोष नहीं रहा था। अय्यु ने भी गाँववालों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार शुरू किया था। For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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