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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-७५ २३ किसी से भी दुर्व्यवहार नहीं : ___ एक सिद्धान्त आप समझ लें - जिनके साथ, जिनके बीच, जीवन जीना है, उनके साथ कभी विरोध नहीं करना चाहिए। गृहस्थ हो या साधु हो, लोगों के बीच ही जीवन जीना होता है। लोगों के साथ-सहयोग से जीवन जीना होता है। हालाँकि इसमें 'औचित्य' का पालन तो होना ही चाहिए। भिन्न-भिन्न प्रकार के लोग होते हैं न? उत्तम पुरुषों के साथ जैसा व्यवहार किया जाय, वैसा व्यवहार हीन लोगों के साथ नहीं किया जाता। फिर भी धनहीन, सत्ताहीन...परन्तु सरल मनुष्यों के साथ दुर्व्यवहार नहीं करना है। कभी कभी उन लोगों को भी थोड़ा महत्त्व देने से, सहायता करने से, वे लोग भी प्रसन्न होते हैं। ___ अपने-अपने पापकर्मों के उदय से, कोई जीव हीन जाति में जन्मा हो, कोई निर्बल हो, कोई अज्ञानी हो, कोई अल्प बुद्धि का हो... ऐसे जीवों का भी सदैव तिरस्कार नहीं करना चाहिए। कभी कभी उनकी इच्छा को भी मान देना चाहिए। ऐसा करने से वे लोग अपने आपको कृतार्थ मानेंगे। उनके चित्त प्रमुदित होंगे और कभी अवसर आने पर वे आपके महान् सहयोगी बन जायेंगे। __ इसी विषय में, अभी मैंने कन्नड़ प्रदेश की एक सच्ची घटना पढ़ी। बहुत पुरानी घटना नहीं है, केवल ६० साल पुरानी कहानी है। लोकयात्रा का अनुसरण करने से क्या लाभ होता है और लोकयात्रा का अतिक्रमण करने से कितने नुकसान होते हैं-यह कहानी सुनने से, आपको मालूम हो जायेगा। लोकयात्रा के अनुसरण में 'औचित्य' क्या होता है...धर्मविरुद्ध लोकयात्रा नहीं करनी चाहिए...वगैरह बातें, आपको यह कहानी ही कहेगी! कीनाकशी ने की बरबादी : ___ कर्णाटक में 'जलहल्ली' नाम का गाँव है। इस गाँव में 'भूतय्या' नाम का साहूकार रहता था। धनवान् था, परन्तु मदान्ध था। क्रूरता का दूसरा पर्याय था। गाँव की सारी जमीन का मालिक बन गया था। सभी खेतों का भी वह मालिक बन बैठा था। सभी किसानों को, शाहूकार को किराया देना पड़ता था। सभी किसान भूतय्या से डरते थे। चूँकि उसने कई किसानों को बरबाद कर डाला था...जिन्होंने भूतय्या को नाराज किया था। किसानों का ही गाँव था। लोग ज्यादा पढ़े-लिखे भी नहीं थे। सभी किसानों के हृदय में भूतय्या के प्रति रोष की ज्वालाएँ धधकती थीं। फिर भी मजबूरन वे लोग भूतय्या के अत्याचारों को सह लेते थे। For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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