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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-९६ २४२ नाक में नथनी पहनकर उसने काँच में देखा । बड़ी खुश हुई। अब उसके मन में आया कि आसपास की महिलाएँ भी मेरी नथनी देखें । वह एक-एक घर जाने लगी और नथनी बताने लगी। महिलाएँ प्रशंसा करने लगीं। सेठानी सबको एक ही बात करती : 'मेरी इच्छा तो घर पर तुलसीदासजी को बुलाकर कथा कराने की थी, परंतु सेठजी को मेरे प्रति इतना मोह कि ७०० रुपये की नथनी खरीदकर लाये! ७०० रुपये में तो कितनी अच्छी कथा हो जाती....! आसपास की औरतों ने जब नथनी देख ली तब गाँव की दूसरी औरतों को बताने लगी। प्रशंसा सुन-सुनकर खुश होने लगी। मनुष्य को अपनी प्रशंसा सुनने में मजा आता है। उन दिनों में फिर से तुलसीदासजी उस गाँव में पधारे। जिसके घर कथा का आयोजन था उसके घर पर, सेठानी एक घंटा पहले पहुँच गई। कथा का समय हुआ, गाँव की औरतें आने लगीं। सेठानी ध्यान रखती है कि किस महिला ने उसकी नथनी नहीं देखी है। जिसने नहीं देखी थी उसका हाथ पकड़कर अपने पास बिठाती है और नथनी बताती है | उसका मन कथा सुनने में नहीं है, नथनी बताने में है! कथा शुरू हुई और पूर्ण भी हो गई। प्रसाद ले-लेकर सभी जाने लगे। सब चले गये, सेठानी बैठी रही। तुलसीदासजी ने सोचा : 'इस महिला को मुझसे कुछ पूछना होगा।' उन्होंने कहा : 'बहिन, तू क्यों बैठी है? क्या काम है?' सेठानी ने कहा : 'महाराज, जो आपसे कथा करवाता है वह धन्य बन जाता है। पुण्यशाली ही ऐसा लाभ पाता है। मेरी इच्छा भी कथा करवाने की थी। मैंने सेठ को बोला भी था कि कुछ रुपये इकट्ठे हो जायें तो अपन भी तुलसीदासजी को घर बुलाकर कथा करवायें.... परन्तु उनको तो मुझ पर इतना मोह है कि बाजार से ७०० रुपये की यह नथनी ले आये...!' कहकर नाक में से नथनी निकालकर तुलसीदासजी को बताने लगी। तुलसीदासजी हँसने लगे। वे समझ गये कि सेठानी क्यों बैठी रही है। उन्होंने सेठानी को कहा : नथनी दी जिस यार ने समरत बारंबार, नाक दियो जिस नाथ ने भूल गई गंवार! 'ओ पगली औरत, जिस तेरे पति ने तुझे नथनी दी है उसको बार-बार याद करती है और जिस नाथ ने, भगवान ने तुझे सुन्दर नाक दी है, उसको भूल गई है!' For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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