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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-९५ २३७ मृत्यु के चिंतन ने जीवों का भीषण हत्याकांड रोक दिया, बादशाह के हृदय में विरक्ति पैदा कर दी। मौत का चिंतन चिरंतन है : __ मृत्यु के विषय में प्रायः सभी धर्मों ने विशिष्ट दृष्टि दी है और दन्यवी पदार्थों की आसक्ति से मुक्त होने का उपदेश दिया है। जैन, बौद्ध और वैदिक धर्मों ने तो मृत्यु के विषय में बहुत कुछ कहा है। इस्लाम, जरथोस्ती और सूफी सम्प्रदायों में भी मृत्यु के विषय में हृदय-स्पर्शी बातें कही गई हैं। सामान्य धर्मों का पालन सुचारु रूप से तभी हो सकता है, जब मनुष्य ममत्वभाव से मुक्त हो। ममत्व से मुक्त होने के अनेक उपाय हैं। उन उपायों में से ग्रंथकार महर्षि ने 'मृत्युबोध' यहाँ बताया है। ___ कुछ लोग मृत्यु से निर्भय बनने के लिए, निश्चिंत बनने के लिए, यह जानने का प्रयत्न करते हैं कि मृत्यु कब आयेगी? ज्योतिषशास्त्र का सहारा लेकर अथवा दिव्य शक्तियों का सहारा लेकर वे यह प्रयत्न करते हैं। परन्तु यह प्रयत्न प्रायः सफल नहीं होता है। चूंकि वर्तमानकाल में अपना आयुष्य 'सोपक्रम' है। यानी कोई भी धक्का लगने पर सौ वर्ष का आयुष्य बीस वर्ष में पूरा हो सकता है। जैसे प्रतिदिन एक-एक रुपया खर्च करनेवाले का १०० रुपया १०० दिन तक चलता है, परंतु यदि वह रोजाना १०-१० रुपया खर्च करता है तो दस दिनों में ही १०० रुपये पूरे हो सकते हैं। आयुष्य के विषय में भी ऐसी ही बात है। इसलिए जीवन अनिश्चित है और मृत्यु भी अनिश्चित है। कभी भी आयुष्य पूरा हो सकता है, मौत आ सकती है। सभा में से : आयुष्य का व्यय कैसे होता है? महाराजश्री : आयुष्य का व्यय श्वासोच्छवास लेने-छोड़ने से होता है। यदि जीवात्मा ज्यादा श्वासोच्छवास लेता है तो आयुष्य का व्यय ज्यादा होता है, यदि जीवात्मा श्वासोच्छवास कम लेता है तो आयुष्य का व्यय कम होता है। इसलिए ऐसी शारीरिक और वाचिक क्रियाएँ नहीं करनी चाहिए कि जिसमें श्वासोच्छवास ज्यादा लेना पड़े। इस दृष्टि से आयुष्य अनिश्चित है। मृत्यु अनिश्चित है। ये दोनों अनिश्चित होने से जीवन अनिश्चित है। कभी भी जीवन समाप्त हो सकता है। इसलिए जब तक जीवन है तब तक आत्मकल्याण कर लेना चाहिए। आयुष्य का भरोसा नहीं करना चाहिए। एक क्षण का भी भरोसा नहीं करना चाहिए। जो कोई अच्छा काम करना हो, आज ही कर लो, For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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