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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३५ प्रवचन-९५ करनेवाला मनुष्य निमित्त को पाकर मृत्यु पर गहरा चिंतन करने लगा है और परमात्मा के अस्तित्व को मानने लगा है। अभी-अभी एक घटना पढ़ी। हालाँकि विदेश की-अमरीका की घटना है। नाम बदलकर घटना सुनाता हूँ। परमात्मा कहाँ है? खोजा है कभी? जिमी और टोम दोस्त थे। जिमी परमात्मा में श्रद्धा रखनेवाला था, टोम परमात्मा को नहीं मानता था। एक बार जिमी ने टोम से पूछा : 'टोम, तू परमात्मा को क्यों नहीं मानता है?' टोम ने कहा : 'परमात्मा कहाँ है? परमात्मा क्या है? मैं नहीं मानता.....।' तब से जिमी ने कभी भी टोम को परमात्मा के विषय में कुछ नहीं कहा। दोनों कॉलेज में साथ-साथ पढ़ते थे। कुछ दिनों से टोम कॉलेज में नहीं आया तो जिमी टोम के घर चला गया । देखा तो टोम का स्वास्थ्य गिर गया था। जिमी टोम से लिपट गया। 'क्या हो गया टोम?' टोम ने कहा : 'डॉक्टर ने बताया कि मुझे कैन्सर हो गया है जिमी।' जिमी जैसे स्तब्ध हो गया। फटी-फटी आँखों से टोम को देखता रहा....। धीरे-धीरे उसकी आँखें बंद हुईं। उसके मुँह से शब्द निकले : 'हे भगवान्, टोम को शान्ति देना...... शान्ति देना......।' बाद में दोनों दोस्तों ने इधर-उधर की बातें की और जिमी अपने घर चला गया। टोम को अब जिमी के शब्द याद आने लगे : 'टोम, तू परमात्मा को क्यों नहीं मानता है?' उसके मन में मंथन शुरू हो गया। कभी-कभी माँ के आग्रह से चर्च में जाता था, उस समय धर्मगुरु बाइबल के वचन सुनाते थे....उन वचनों में से एक वचन उसको याद आया : 'भगवान् और कोई नहीं है, प्रेम वही भगवान् है।' टोम ने सोचा : प्रेम ही भगवान् है, तो मुझे सबसे प्रेम करना चाहिए । 'मेरी माँ मुझसे प्रेम करती है, मेरे पिता भी मुझसे प्रेम करते हैं.... मेरे भाई, मेरी बहन..... सब मुझसे प्रेम करते हैं; परंतु मैंने किसी से प्रेम नहीं किया, सिवा जिमी। मैंने मेरे साथ पढ़नेवालों के साथ भी प्रेम नहीं किया। और..... अब तो मुझे जाना है। डॉक्टर पिताजी से कहते थे : 'कैन्सर का कोई इलाज नहीं है। मृत्यु मेरे सामने है। मृत्यु से पहले मैं सबसे प्रेम कर लूँ, तो परमात्मा खुश होंगे... मेरे सारे अपराधों को माफ कर देंगे।' __ प्रभात का समय था । टोम के पिताजी अखबार पढ़ रहे थे। टोम उनके पास पहुँचा। उसने कहा : 'पिताजी, मुझे आपसे बात करनी है।' पिताजी ने टोम के सामने देखा। 'कहो टोम, क्या कहना है?' 'पिताजी मुझे महत्त्व की बात कहनी है, टोम अपने पिताजी से सट करके खड़ा रहा। 'कहो बेटे, क्या कहना है?' For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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