SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-९५ दुर्लभ और सुलभ का फेर : ग्रंथकार आचार्यश्री ने मनुष्य जीवन को दुर्लभ बताया है, शेष तीन प्रकार के जीवन की अपेक्षा से । नरक गति के जीवों की अपेक्षा से, तिर्यंच गति के जीवों की अपेक्षा से और देवगति के जीवों की अपेक्षा से । नरक में जन्म होना, तिर्यंच (पशु-पक्षी) में जन्म होना या देवगति में जन्म होना सुलभ है। मनुष्य गति में जन्म होना दुर्लभ है। नरक में असंख्य जीवन होते हैं, तिर्यंच गति में अनंत जीव होते हैं, देवगति में असंख्य जीव होते हैं, परन्तु मनुष्य गति में गिनती हो सके उतने ही जीव होते हैं । जो जीवन सबसे कम जीवों को मिलता है वह जीवन दुर्लभ कहा जाता है। सभा में से : आजकल तो दुनिया में मनुष्यों की संख्या काफी बढ़ रही है, तो क्या मनुष्य जीवन सुलभ हो गया है ? २३० महाराजश्री : कितनी भी संख्या बढ़ो मनुष्यों की; परन्तु देव, नारक और तिर्यंचों की संख्या के जितनी कभी नहीं बढ़ेगी! आज जो कहा जाता है 'मनुष्यों की संख्या काफी बढ़ रही है,' वह भी अपेक्षा से कहा जाता है! दस वर्ष पूर्व जो संख्या थी, इससे आज संख्या बढ़ गई है। ऐसे तो बढ़ना-घटना चलता रहेगा। जब जब विश्वयुद्ध हुए लाखों मनुष्य मर गये, संख्या घट गई! अब यदि अणुयुद्ध हुआ तो करोड़ों मनुष्य मर सकते हैं, संख्या घट जायेगी ! तीर्थंकर भगवंतों ने समग्रतया विश्वदर्शन करके मनुष्य जीवन की दुर्लभता बतायी है। उन्होंने अपने पूर्ण ज्ञान में देखा कि मनुष्य की संख्या कितनी भी बढ़ेगी, परन्तु शेष तीन गति के जीवों की अपेक्षा से कम ही रहेगी। ज्ञानीपुरुष तो मनुष्य जीवन की दुर्लभता बताते ही हैं, परन्तु जब मनुष्य समझें कि 'मेरा जीवन दुर्लभ है, मुझे दुर्लभ जीवन की प्राप्ति हुई है, तब उसके लिए मनुष्य जीवन महत्त्व रखता है। मनुष्य के पास मूल्यवान् दुर्लभ रत्न है, परन्तु वह नहीं जानता कि 'मेरे पास दुर्लभ रत्न है, तो उसके लिए रत्न कोई महत्त्व का नहीं रहता । उसके लिए वह रत्न काँच का टुकड़ा ही है! आपकी कीमत है कहाँ ? For Private And Personal Use Only मनुष्य जीवन की दुर्लभता को जो मनुष्य नहीं समझता है वह मनुष्य, जीवन का सदुपयोग नहीं कर सकेगा। जीवन का दुरुपयोग ही करेगा। चूँकि मनुष्य का ऐसा स्वभाव है कि जिस वस्तु को वह मूल्यवान् समझता है, दुर्लभ समझता है, उस वस्तु की वह ज्यादा हिफाजत करता है । उस वस्तु का दुरुपयोग नहीं करता है। यदि कोई उस वस्तु का दुरुपयोग करता है, बिगाड़ता है, तो उसको दुःख होता है । आप लोगों को जीवन की क्षणों का दुरुपयोग होने पर दुःख होता है क्या? यदि होता है तो समझना कि आप मनुष्य जीवन को दुर्लभ मानते हो ।
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy