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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-९४ २२४ ० गुरुदेवों की निरंतर सत्प्रेरणा मिलती रहने से आप शिष्ट पुरुषों की प्रशंसा करनेवाले बन जायेंगे, दुर्जनों का संपर्क छूट जायेगा और सत्पुरुषों की मैत्री बन जायेगी। ० सुखों का राग कम होने से आप उचित समय ही भोजन करेंगे और अजीर्ण होने पर भोजन का त्याग करेंगे। अभक्ष्य भोजन नहीं करेंगे | परनिन्दा नहीं करेंगे, स्वप्रशंसा नहीं करेंगे। ० निर्मल प्रज्ञावाले गुरुजनों के संपर्क से, आपकी बुद्धि निर्मल बनेगी। बुद्धि में शुद्धि आयेगी। ज्यादा नहीं तो कम, परन्तु शुद्धि आयेगी अवश्य। सभा में से : वंकचूल के जीवन में ऐसी ही बात बनी थी न? महाराजश्री : हाँ, प्रज्ञावंत आचार्यदेव के परिचय से उस डाकू की बुद्धि भी कुछ निर्मल बनी थी। प्रतिज्ञाओं का पालन शुद्ध बुद्धि से हो सकता है। उसने जो चार प्रतिज्ञाएँ ली थीं, उन प्रतिज्ञाओं का पालन उसने दृढ़ता से किया था । वंकचूल की कसौटी : ___ एक दिन वंकचूल अपने सभी साथी-डाकुओं के साथ डाका डालने चला गया था | गाँव में एक भी पुरुष नहीं रहा था। सब औरतें ही गाँव में थीं। दूसरी पासवाली पल्ली के डाकुओं को मालूम हो गया कि इस पल्ली में एक भी डाकू नहीं है। उन्होंने इस पल्ली को लूटने की योजना बनायी। करीबन् २०/२५ डाकुओं ने नटों का वेश धारण किया। वंकचूल की पल्ली में आये | पल्ली में जाहिर किया कि 'आज रात को यहाँ हम रामलीला करेंगे।' । वंकचूल के घर में उसकी पत्नी और बहन थी। बहन ने नटों को देखा। उसके मन में शंका पैदा हुई। 'ये डाकू भी हो सकते हैं। यहाँ एक भी पुरुष नहीं है, यह जानकर यहाँ आये हों.....। रात में एक तरफ रामलीला चलती रहे और दूसरी तरफ ये लोग घरों को लूट लें.....।' उसके मन में चिंता हुई। उसने अपनी भाभी से बात की। दोनों सोचती रही। भाभी ने कहा : 'अपन ऐसा करें कि रामलीला देखने जब अपन जायें तब तू तेरे भाई के वस्त्र पहन लेना। तेरा मुँह तेरे भाई जैसा ही है! रात्रि में मशालों के प्रकाश में कोई गौर से देखेगा नहीं और वे डाकू समझेंगे कि 'सरदार आ गये हैं.....' तो चोरी का विचार छोड़ कर चले जायेंगे।' - इसको कहते हैं बुद्धि! आफत के समय बुद्धि काम आती है। बुद्धि से बचने का रास्ता निकल आता है। परंतु यदि मनुष्य संकट के समय घबरा जाता है, चिन्तामग्न हो जाता है, तो उसकी बुद्धि काम नहीं करती है। काम करती भी For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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