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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-९२ १९९ बात कही थी, उस समय आपको कह देना चाहिए था कि नाचती हुई नटियों को भी नहीं देखना चाहिए। आपने कहा ही नहीं और आज हमारी गलती बताते हो....।' जो बद्धिमान नहीं होते हैं, जड़ होते हैं, जो सरल नहीं होते हैं परन्तु वक्र होते हैं, टेढ़े चलते हैं, ऐसे लोग संसार के व्यवहारों में भी सफलता नहीं पाते हैं। बुद्धि का टेढ़ापन दुःखी करता है : ___ जटाशंकर हमेशा अपने उद्धत लड़के को कहा करता था कि 'बेटा, मातापिता की बातें सुननी चाहिए, हर बात में सामने जवाब मत दिया कर ।' बेटा हर बात का जवाब देता था! जटाशंकर लड़के से परेशान था! एक दिन जटाशंकर ने लड़के से कहा : 'बेटा, तेरी माँ और मैं, एक शादी में जा रहे हैं, शाम को वापस लौटेंगे। तू घर ही रहना, इधर-उधर भटकने नहीं जाना। खयाल रखना घर का।' जटाशंकर पत्नी के साथ शादी में गया। लड़के ने सोचा कि 'आज मेरे पिता को सबक सिखा दूँ.... रोजाना मुझे कहते रहते हैं : 'माता-पिता के सामने नहीं बोलना चाहिए। आज बिलकुल नहीं बोलूंगा।' उसने घर को भीतर से बंद कर दिया और घर के बीच खटिया बिछाकर सो गया! शाम को जटाशंकर घर लौट आया। उसने घर का दरवाजा खटखटाया। दरवाजा नहीं खुलता है। जटाशंकर चिल्लाया : 'रमण, दरवाजा खोल ।' रमण नहीं खोलता है! जटाशंकर जोर-जोर से चिल्लाता है, उसकी पत्नी भी चिल्लाती है, परन्तु लड़का दरवाजा नहीं खोलता है! जटाशंकर को चिंता हुई.... 'क्या हुआ होगा बेटे को....?' वह घर के छप्पर पर चढ़ा | खपरैलों को हटाकर घर में झाँकता है। उसकी आँखें चौड़ी हो गईं! लड़का खटिये में पड़ा पड़ा हँस रहा है! जटाशंकर को गुस्सा आ गया : 'अरे, हम इतना चिल्लाते हैं और तू दरवाजा नहीं खोलता है? खोल दरवाजा ।' लड़के ने कहा : 'आप ही तो हमेशा कहा करते हो कि माता-पिता के सामने नहीं बोलना चाहिए। इसलिए मैं नहीं बोल रहा हूँ।' _ इसको कहते हैं वक्रता! दूसरों की बातों का सही अर्थ नहीं करने देती यह वक्रता। विपरीत अर्थ ही करवायेगी। जड़ता और वक्रता मनुष्य को आत्मकल्याण के मार्ग में बाधक बनती है। बुद्धिमत्ता और सरलता आत्मकल्याण के मार्ग में साधक बनती है। For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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