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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८९ प्रवचन-९१ अपने ४५ आगमों को लेकर महान् शोधप्रबंध लिखा है! कैसे लिखा होगा? पहले जिज्ञासा पैदा हुई होगी, फिर उन शास्त्रों को-आगमों को सुना होगा या विद्वानों से पढ़ा होगा, समझा होगा... उस पर चिन्तन-मनन किया होगा... तब लिखा होगा न? आप लोगों में ४५ आगम सुनने की इच्छा भी पैदा हुई है क्या? सभा में से : कभी ४५ आगम की पूजा पढ़ा लेते हैं मंदिर में जाकर! महाराजश्री : और उस पूजा में उपस्थित भी रहते होंगे? नहीं न? मंदिर की पेढ़ी में रुपये जमा करा देते होंगे? 'हमारी ओर से ४५ आगम की पूजा पढ़वा लेना।' कह कर अपने घर पर! पुजारी किताब पढ़ कर पूजा बोल दे और थोड़े फल, थोड़ा नैवेद्य भगवान् के सामने रख दे...! हो गई पूजा! ४५ आगम के नाम भी जानते हो क्या? धर्मशास्त्रों के प्रति श्रद्धा, भक्ति और बहुमान है क्या? तो फिर उन शास्त्रों को सुनने की इच्छा कैसे जाग्रत होगी? आगम-ग्रन्थों के प्रति प्रीति होनी ही चाहिए। चूंकि ये आगम-ग्रन्थ ही हमारे मोक्षमार्गप्रकाशक हैं। बुद्धि का पहला गुण होगा तो ऐसे आगम-ग्रन्थों का श्रवण करने की इच्छा पैदा होगी ही। जिनसे तत्त्वज्ञान पाना है, जिनसे श्रवण करना है, उनके प्रति विनयपूर्ण व्यवहार होना चाहिए। विनयधर्म का पालन करते-करते शुश्रूषा का भाव पैदा हो जाता है! कहा गया है - 'विनयफलं शुश्रूषा' विनय का फल शुश्रूषा है : ज्ञानीपुरुषों का विनय करते रहो, तत्त्वश्रवण करने की इच्छा स्वतः पैदा हो जायेगी अथवा विनय से प्रसन्न गुरुजन आपके हृदय में शुश्रूषा का भाव पैदा कर देंगे। विनय से ज्ञान प्राप्त होता है : एक गाँव था । पूरा गाँव डाकुओं का था। ५०० डाकू-परिवार उस गाँव में रहते थे। एक आचार्य अपने शिष्य-परिवार के साथ पदयात्रा करते हुए वहाँ से गुजर रहे थे। अचानक बरसात हुई, होती ही रही बरसात । रास्ते में नदियाँ पानी से उभरने लगीं। रास्ता कीचड़वाला हो गया। पदयात्रा आगे होना असंभव-सा हो गया। आचार्यदेव ने गाँव के मुखिया से पूछा : 'महानुभाव, हम जैन साधु हैं। वाहन का उपयोग नहीं करते हैं और भिक्षावृत्ति से जीवननिर्वाह करते हैं। अब हम यहाँ से आगे नहीं बढ़ सकते हैं। क्या वर्षाकाल हम यहाँ व्यतीत कर सकते हैं? हमको यहाँ रहने की जगह मिल सकती है? और हमारे यहाँ रहने से आप लोगों को कोई तकलीफ तो नहीं होगी?' For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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