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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-८९ १७३ संघ या समाज के कुछ लोग, ट्रस्टियों की पसंदगी करते हैं। किसी को ट्रस्टीशिप की उम्मीदवारी करने की नहीं होती है। संघ-समाज में से किसी की भी पसंदगी की जा सकती है। यह पसंदगी एक वर्ष से लगाकर पाँच वर्ष तक हो सकती है... आजीवन भी ट्रस्टी नियुक्त किये जा सकते हैं। __चुनाव की पद्धति तो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। चुनाव में मनुष्य पैसे के बल से वोट खरीद सकता है और जीत सकता है। वैसे, गुन्डागिर्दी से भी लोग चुनाव में जीत जाते हैं। कार्यदक्षता या किसी प्रकार की योग्यता का महत्त्व चुनाव में नहीं रहता है। कौन बैठते है वहाँ? ___ भारत की लोकसभा में बैठने वालों को क्या भारतीय संविधान का भी ज्ञान है? कितने लोगों को होगा ज्ञान? लोकसभा में बैठने वालों में से कितनों को भारतीय संस्कृति का, भारतीय धर्मों का और भारतीय प्रजाजीवन का ज्ञान होगा? चुनाव जीतकर वे लोकसभा में चले गये और प्रजाजीवन से संलग्न कानून बनाते रहते हैं। हमारे देश की संस्कृति के खिलाफ कितने कानून बने हैं - क्या आप लोग जानते हो? धार्मिक क्षेत्रों में जो लोग चुनाव जीतकर ट्रस्टी बनते हैं या प्रमुखउपप्रमुख-कोषाध्यक्ष या सेक्रेटरी बनते हैं, क्या उनको धार्मिक सिद्धान्तों का ज्ञान होता है? जैन संघ का संचालन तो धार्मिक सिद्धान्तों से ही किया जाता है। इसलिए अपने यहाँ सात क्षेत्रों की व्यवस्था स्थापित है। क्या प्रमुख वगैरह पदाधिकारियों को सात क्षेत्रों का ज्ञान होता है? क्या उनमें धार्मिकता होती है? मंदिर-कमिटी का प्रमुख क्या प्रतिदिन मंदिर में आकर पूजा-सेवा करता है? बहुत कम संख्या में। चुनाव में योग्यता-अयोग्यता का विचार ही नहीं किया जा सकता है। __ चुनाव की पद्धति में परस्पर का प्रेम और मैत्री नष्ट हो जाती है। दूसरों का पराभव करने की हमेशा वृत्ति बनी रहती है। पराभव करने के लिए अन्यायपूर्ण, अनीतिपूर्ण कार्य किये जाते हैं। अभिनिवेश बढ़ता जाता है। अभिनिवेश की वृद्धि के साथ क्रोध, मान, माया और लोभ भी बढ़ते जाते हैं। इससे जीवन में अशान्ति बढ़ती जाती है। अशान्ति बढ़ने से धर्मआराधना में मन नहीं लगता है। पारिवारिक जीवन में क्लेश बढ़ता जाता है। इससे अर्थपुरुषार्थ में और कामपुरुषार्थ में भी बाधाएँ पैदा होती हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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