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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-७३ ___१० श्रेष्ठि राजा के प्रति हर्षाश्रु बहाता हुआ नतमस्तक हो गया! अब आप सोचें कि ऐसे राजा के लिए, राज्य के लिए, प्रजा क्या त्याग नहीं कर सकती? कौन-सा समर्पण नहीं कर सकती? ऐसे सत्ताधीशों के देश में प्रजा निर्भयता से जी सकती है। निर्भय और निश्चित बन कर धर्म-अर्थ-कामपुरुषार्थ कर सकती है। चारों तरफ लूट मची है : वर्तमानकालीन सत्ताधीशों की धनलालसा अमर्यादित बनी है। सत्ताधीशों ने अपने लिए 'पूंजीवाद' पसंद किया है! प्रजा के लिए 'निर्धनवाद' पसंद किया है। साम्यवाद और समाजवाद तो मात्र बोलने के रह गये हैं। चारों ओर प्रजा को लूटने का काम हो रहा है। प्रजा बुरी तरह पीसी जा रही है। कहते हैं 'प्रजा का राज्य है'-परन्तु यह भयानक असत्य है! प्रजा का राज्य नहीं है, मदान्ध सत्ताधीशों का राज्य है। प्रजा को कहाँ निर्भयता है? इस परिस्थिति को देखते हुए आपको सजग बनना होगा। ऐसी जीवन पद्धति को अपनायें कि आप लूटे न जायँ, आफतों में फँस न जायँ । श्रीमन्त बनने के...बड़े धनवान् बनने के मनोरथ छोड़ दें। यदि श्रीमन्त बन भी गये तो संपत्ति का संग्रह न करें, अच्छे कार्यों में गुप्तदान देते रहें। हो सके उतना ज्यादा गुप्तदान दें। जाहिर में बड़े दान देने में भी खतरा है। सत्ताधीशों की निगाह में आ गये...तो आफत आ सकती है। देद वणिक राजा की निगाह में आ गया! हालाँकि उसने तो अभी कोई बड़ा दान भी नहीं दिया था...रहनसहन में ही परिवर्तन हुआ था। कर्जा उतारा था...और जीवन-व्यवहार में थोड़ी उदारता आयी थी...बस, इतने में भी लोगों की ईर्ष्याभरी दृष्टि में आ गया! बात पहुँच गई राजा के पास! 'देद को कोई गुप्त खजाना मिल गया है!' राजा के मन में वह खजाना पाने की तीव्र इच्छा पैदा हो गई! अफवाह के पंख लग जाते हैं : गाँवों में और छोटे नगरों में ऐसी बातें जल्दी फैलती हैं! कोई श्रीमन्त बनता है...शीघ्र बात फैल जाती है और कोई निर्धन बनता है तो भी बात शीघ्र फैल जाती है! बंबई, कलकत्ता जैसे बड़े नगरों में ऐसा नहीं होता है। नांदुरी नगरी छोटी थी। देद की संपत्ति की बात शीघ्र फैल गई। कुछ लोग खुश होने वाले भी होंगे...कुछ लोग ईर्ष्या से जलने वाले होंगे। हर काल में जीवों के दो प्रकार मिलते हैं! चौथा आरा हो या पाँचवा आरा हो! सतयुग हो या कलियुग हो! For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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