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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-८८ ____१६३ परिवर्तन दिल में होना जरूरी है : तो क्या, जिन-जिन अपराधियों को सजा होती है, वे अपराधी सुधर जाते हैं सभी? क्या वे पुनः पुनः अपराध नहीं करते हैं? सजा होने पर भी बार-बार अपराध करनेवाले लोग बहुत हैं। महत्त्व की बात है हृदय-परिवर्तन की। किसी भी उपाय से आप अपराधी का हृदय-परिवर्तन करें। मारने से, कष्ट देने से यह काम नहीं होगा। ___ गुजरात में एक गाँव ऐसा था कि उस गाँव में सभी लोग चोर थे! चोरों का गाँव था! समाज के कुछ हितचिन्तक लोगों ने सोचा... वहाँ जाकर परिस्थिति का अध्ययन किया...| गाँव में स्कूल नहीं थी। बच्चों को शिक्षा नहीं मिल रही थी। लोगों के पास खेती करने योग्य जमीन नहीं थी। चोरी करने में सहायक थे सरकारी लोग | उन लोगों ने प्रयत्न कर गाँव में स्कूल की स्थापना करवायी। बाद में थोड़े-थोड़े लोगों को जमीन दिलवायी। खेती करके गुजारा करने की प्रेरणा दी। सरकारी अफसरों का स्थानान्तर करवा दिया...| चोरी का प्रमाण घटने लगा। करीबन् १० वर्ष के प्रयत्नों से उस गाँव को सज्जनों का गाँव बना दिया गया। इस बारे में रविशंकर महाराज ने काफी प्रयत्न किये थे। उन्होंने अपना जीवन अधिकांश इस तरह की ग्रामसुधार एवं व्यक्तिसुधार की प्रवृत्तियों में बीताया था । अलबत्ता, उन्हें इसके लिये तकलीफें भी झेलनी पड़ी...संकट भी उठाने पड़े, पर अपने 'मिशन' में उन्होंने सफलता अर्जित कर ली। ___ आप स्वयं अभिनिवेश का त्याग करेंगे तो दूसरों को प्रेरणा अवश्य मिलेगी। मानो कि किसी ने आपका पराभव करने का प्रयत्न किया है। आपको मालुम भी हो गया। आप आपकी सुरक्षा की उचित प्रवृत्ति कर सकते हैं, परन्तु पराभव करनेवाले का पराभव करने का कभी नहीं सोचें। आप अपनी सुरक्षा की कार्यवाही करें, उसमें इस बात की सावधानी रखें कि दूसरों का पराभव न हो जाय । सही या गलत आक्षेपबाजी नहीं होनी चाहिए । व्यक्तिगत द्वेष नहीं होना चाहिए। आपसी रंजिश कितनी बढ़ गई है? ___ पारिवारिक जीवन में एक-दूसरे का पराभव करने की वृत्ति-प्रवृत्ति बहुत चलती है न? भाई भाई का पराभव करने के लिये अन्याययुक्त प्रवृत्ति करता है, सास पुत्रवधू का पराभव करने की भावना से अन्यायपूर्ण प्रवृत्ति करती है। पुत्रवधू सास का पराभव करने की इच्छा से अन्याययुक्त प्रवृत्ति करती है...। For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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