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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ८८ १६१ महामंत्री को तो राजा देशनिकाला दे नहीं सकता था... चूँकि महामंत्री राज्य में अत्यन्त लोकप्रिय थे और राज्य के आधार भी वे ही थे । लीलावती के चरित्र का हनन हुआ ... उसको सजा हुई... इससे कदंबा को बड़ी खुशी हुई। अभिनिवेश वाले मनुष्य को इसमें खुशी होती है। दूसरों को दुःखी करके वे खुश होते हैं । परन्तु वह खुशी क्षणिक होती है। उन लोगों की सफलता भी क्षणिक होती है । लीलावती का कुछ नहीं बिगड़ा और महामंत्री का भी कुछ नहीं बिगड़ा। जब सत्य प्रकाशित हुआ... लीलावती पुनः पटरानी बन गई और कदंबा को अपने मायके भाग जाना पड़ा। महामंत्री का प्रभाव ज्यादा बढ़ गया। लीलावती श्री नमस्कार महामंत्र की परम उपासिका बन गई। सीताजी की, ऋषिदत्ता की एवं लीलावती की - इन तीन घटनाओं में तो ईर्ष्या का कोई न कोई कारण भी देखने को मिलता है । परन्तु बिना कोई कारण ईर्ष्या करनेवाले... अभिनिवेश रखनेवाले लोग भी दुनिया में मिलते हैं। ईर्ष्या क्या नहीं करवाती है ? : आपने जगदीशचन्द्र बसु का नाम तो सुना है न ? भारत के इस वैज्ञानिक ने 'वनस्पति में जीवत्व है,' यह सिद्धान्त विज्ञान के माध्यम से सिद्ध किया था । जगदीशचन्द्र के पिताजी थे भगवानदास बसु । भगवानदास शान्त प्रकृति के थे, न्यायनिष्ठ एवं नीतियुक्त व्यवहारवाले थे। लोगों में... गाँव में उनकी प्रतिष्ठा थी। लोग उनकी प्रशंसा करते थे। उस गाँव के एक पुरुष को भगवानदास की प्रशंसा सुनकर बुखार आ जाता था । भगवानदास ने उस पुरुष का कुछ भी नहीं बिगाड़ा था, न उसके लिए कभी कटु शब्द का प्रयोग किया था। फिर भी वह भगवानदास के प्रति ईर्ष्या से जलता था। न उसका कोई स्वार्थहनन होता था, न उसका कोई संबंध था भगवानदास के साथ । ईर्ष्या की पापवृत्ति प्रबल होती गई। भगवानदास को बरबाद करने का अवसर खोजने लगा। एक दिन, जब शाम हुई... अंधेरा पृथ्वी पर छा गया ... उसने भगवानदास के घर को आग लगा दी । घर जलने लगा...। भगवानदास अपने परिवार को लेकर घर से बाहर निकल आये। गाँव के लोग भी दौड़े-दौड़े आये। आग बुझाने का प्रयत्न करने लगे। गाँव के सभी लोग क्षुब्ध थे। सब लोग दुःखी थे... सभी आपस में चर्चा करते हैं : 'किसने आग लगाई होगी? ऐसे महात्मा जैसे पुरुष के घर को आग लगानेवाला कौन होगा? यदि मालूम हो जाय तो उसको इसी आग में झोंक दें...।' लोगों में रोष व्याप्त होने लगा। भगवानदास परिवार के साथ जलते हुए घर के सामने शान्त भाव से खड़े थे। For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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