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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५५ प्रवचन- ८७ हैं, छिद्रान्वेषण के लिए आते हैं या तो समय व्यतीत करने को आते हैं। पूर्वाग्रही लोगों की बुद्धि कुंठित होती है। उन्होंने जितना समझा हुआ होता है, इससे ज्यादा वह कुछ भी समझना नहीं चाहते। उनकी समझदारी से विपरीत कोई बात सुनते हैं तो उनसे बर्दास्त नहीं होती है। वे सर्वज्ञ की तरह आलोचना करने लगते हैं। स्वयं शास्त्रज्ञ नहीं होते हुए भी 'सर्वशास्त्रविशारद' की तरह बातें करते हैं। कैसी हास्यास्पद बातें होती हैं उनकी ! मिथ्या गर्व किये फिरते रहते हैं । प्रतिदिन धर्मश्रवण करनेवालों में इस रोग की संभावना ज्यादा रहती है । वे लोग अपनी बुद्धि से सोचते ही नहीं हैं! मात्र शब्दों को पकड़ लेते हैं, तात्पर्यार्थ से दूर रहते हैं । इसलिए आप लोगों को कहता हूँ कि आप लोग इस रोग से बचे रहना। धर्मश्रवण कुछ आन्तरिक धन प्राप्त करने की दृष्टि से करें। भीतर के क्रोध-मान- माया, लोभ इत्यादि दोषों को दूर करने की दृष्टि से धर्मश्रवण करते रहें । श्री इन्द्रभूति गौतम भगवान् महावीर के पास गये थे अभिमान से, वादविवाद करने की इच्छा से, परन्तु उनमें पूर्वाग्रह या दुराग्रह नहीं थे । भगवंत ने उनके मन के संशय को बता दिया और संशय का निराकरण कर दिया... बस, अपने पूर्व खयालों को झटक कर भगवंत के चरणों में जीवन समर्पण कर दिया। श्री इन्द्रभूति गौतम कोई सामान्य विद्वान् नहीं थे। वेदों के पारगामी असाधारण ब्राह्मण विद्वान् थे। उनका कैसा विधेयात्मक चिंतन होगा? वैसे, दूसरे भी १० प्रतिभाशाली ब्राह्मण विद्वान् भी कितने निराग्रही और सरल होंगे? ज्यों-ज्यों भगवंत ने उनके मन की शंकाएँ दूर कीं, वे परमात्मा के शिष्य बनते गये। उन्होंने परम सत्य पा लिया । धर्मश्रवण और चिंतन के विषय में कुछ विस्तार से बातें बतायी हैं । आप सब प्रतिदिन सद्गुरु से धर्मश्रवण करते रहें और चिंतन-मनन कर अपनी आत्मा को निर्मल बनाते रहें यही मंगल कामना । आज बस, इतना ही । For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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