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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५१ प्रवचन-८७ सद्गुरु के तीन शब्दों ने कैसा चमत्कार कर दिखाया? परंतु चमत्कार तब घटा, जब सुननेवाले ने सुनकर छोड़ नहीं दिये वे शब्द, परन्तु उस पर चिन्तन किया । शब्दों को सुनकर यदि छोड़ दिया होता तो ऐसा चमत्कार संभव नहीं था। शब्दों को सुनकर यदि निषेधात्मक चिन्तन करते, तो भी यह चमत्कार संभव नहीं होता। निषेधात्मक चिन्तन किसको कहते हैं, जानते हो? 'मुनि ने कह दिया उपशम-विवेक-संवर...! आ-हा-हा, मेरे जैसे डाकू के जीवन में कैसे शान्ति संभव है? कैसे त्याग संभव है? कैसे संवर संभव है? भई.... अपने से तो यह कुछ भी हो नहीं सकता... मुनि भी आकाश में उड़ गये... चलो, काम पूरा हुआ....।' यह है एक प्रकार का निषेधात्मक चिन्तन | जीव में, मनुष्य में यदि सरल बुद्धि नहीं होती है, वक्रता होती है, तो वह इस प्रकार निषेधात्मक चिन्तन करता रहेगा। आत्मविकास की यात्रा में निषेधात्मक चिंतन बाधक बनता है। आत्मविशुद्धि के मार्ग में अवरोधक बनता है। ऋषभदेव ने पुत्रों को समझाया : भगवान् ऋषभदेव ने जब संसार-त्याग कर श्रमण जीवन अंगीकार किया था उस समय अपने सौ पुत्रों को राज्य बाँटकर दिया था। सबको स्वतंत्र राज्य प्रदान किया था। सबसे बड़ा पुत्र था भरत | भरत सार्वभौम चक्रवर्ती होने जा रहा था। समग्र भारत पर उसे विजय पानी थी | चक्रवर्ती के रूप में उसका राज्याभिषेक तब हो सकता था, जब 'चक्ररत्न' उसकी आयुधशाला में प्रविष्ट हो । चक्ररत्न देवाधिष्ठित शस्त्र होता था। जब चक्ररत्न आयुधशाला में प्रविष्ट नहीं हुआ, भरत के मन में चिन्ता हुई। महामन्त्री ने कहा : 'जब तक आपके ९९ भ्राता आपके आज्ञांतिक नहीं बनेंगे तब तक चक्ररत्न आयुधशाला में नहीं प्रविष्ट होगा।' भरत ने अपने दूतों को ९९ भाइयों के पास भेजा। बाहुबलि ने तो दूत की बात सुनकर, उसकी भर्त्सना कर वापस भेज दिया । भरत की आज्ञा मानने से इनकार कर दिया। दूसरे ९८ भाइयों को भी भरत का संदेश सुनकर क्रोध आ गया । क्यों ऐसा हुआ आप समझते हैं क्या? ९९ भाइयों ने भरत का संदेश सुनकर निषेधात्मक चिंतन किया। 'पिताजी ने हम सबको स्वतंत्र राज्य दिया है, हम भरत की पराधीनता नहीं स्वीकारेंगे।' ___ बाहुबली तो युद्ध के लिए तैयार हो गये । ९८ भाइयों ने भी मिलकर भरत के साथ युद्ध करने का निर्णय कर लिया। परन्तु ९८ भाइयों के मन में विचार For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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