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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-८६ १३७ आश्रय मिल जाय तो रुक जाऊँ । वह एक घास की झोंपड़ी के पास पहुंचा। झोंपड़ी एक कसाई की थी। गंदगी से भरी हुई थी। छत पर मरे हुए पशु लटक रहे थे। एक तरफ मल-मूत्र विसर्जन की जगह थी। इतनी दुर्गन्ध फैली हुई थी कि राजा का सर चकराने लगा। क्षणभर तो उसने सोचा कि 'मैं यहाँ रात नहीं बिता सकता...।' परंतु जाये तो कहाँ जाये? वहाँ ही रुकना अनिवार्य था। उसने कसाई से कहा : 'भैया, मैं भूला पड़ा हुआ मुसाफिर हूँ। मुझे एक रात के लिए यहाँ आश्रय दोगे क्या?' कसाई ने कहा : 'मैं अब किसी भी पथिक को आश्रय नहीं देता हूँ।' 'ऐसा क्यों?' राजा ने अधीरता से पूछा। 'जो-जो पथिक यहाँ आश्रय पाने को आते हैं वे तेरी तरह ही कहते हैं कि 'बस, रातभर रहने दो, सुबह चले जायेंगे।' परन्तु वे सुबह जाते नहीं और यहीं रहने के लिए आग्रह करते रहते हैं... याचना करते हैं... यहाँ से जाने को तैयार ही नहीं होते....। तब, मुझे बलप्रयोग करना पड़ता है। इसलिए अब मैं किसी को आश्रय नहीं देता हूँ।' राजा ने कहा : 'मैं वैसा नहीं करूँगा, प्रातःकाल होते ही यहाँ से चला जाऊँगा। दया कर, मैं तुझे परेशान नहीं करूँगा।' कसाई ने उसको आश्रय दिया । राजा मुँह और नाक पर कपड़ा बाँध कर झोंपड़ी में सो गया। फिर भी तीव्र दुर्गन्ध ने आधी रात तक उसको सोने नहीं दिया। धीरे-धीरे वह दुर्गन्ध उसके मस्तिष्क में व्याप्त हो गई। प्रातः जब वह उठा, उसको सब कुछ अच्छा लगने लगा। वहाँ से जाने की उसकी इच्छा नहीं हुई। कसाई को कहने लगा : 'भैया, मुझे यहाँ रहने दो, तुम कहोगे वह काम मैं करूँगा।' कसाई हँसने लगा। वह बोला : 'सब लोग ऐसा ही कहते हैं... तुझे यहाँ से तो जाना ही पड़ेगा।' शुकदेवजी ने कहा : 'परीक्षित, तुम्ही कहो कि राजा ने उचित किया या अनुचित?' परीक्षित ने कहा : 'भगवन् वह राजा कौन था? कितना मूर्ख था वह? प्रतिज्ञा का भंग करना सर्वथा अनुचित है। अपने राज्य की जिम्मेदारी को भूल कर वह उस गंदी झोंपड़ी में रहने को तैयार हो गया... बहुत अयोग्य किया उसने।' शुकदेवजी ने कहा : 'परीक्षित! वह राजा दूसरा कोई नहीं, तू ही है।' For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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