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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० प्रवचन-८४ इसलिए श्रीमंतों में एक दूसरा प्रदूषण भी प्रविष्ट हो गया है... मदिरापान का। शराब पीना, विदेशी शराब पीना... श्रीमंतों के घर की फैशन बन गई है। ऐसे श्रीमन्त समय को परख नहीं सकते हैं। उनकी बुद्धि मोहग्रस्त हो जाती है। दो सौ रुपये होटल में खर्च कर देंगे परन्तु किसी जरूरतमन्द रिश्तेदार को या स्नेही-स्वजन को दो सौ रुपये की सहायता नहीं करेंगे। परमात्मभक्ति में या गुरुभक्ति में खर्च करेंगे क्या? योग्य समय पर वे संपत्ति का सद्व्यय नहीं कर पायेंगे। समय का औचित्य समझने की सूझ-बूझ होनी चाहिए। जो समझते हैं वे श्रेष्ठता, सफलता एवं लोकप्रियता प्राप्त कर लेते हैं। जो नहीं समझते हैं वे काल/महाकाल के अनन्त प्रवाह में बह जाते हैं। हालाँकि हर व्यक्ति कालज्ञ-समयज्ञ नहीं होता है, हो भी नहीं सकता, परन्तु संघ और समाज में...हर गाँव-नगर में कुछ लोग तो कालज्ञ-समयज्ञ होते ही हैं। उन लोगों का अनुसरण करने की सरलता तो प्रजा में होनी चाहिए। सभा में से : ऐसी सरलता अब लोगों में रही ही नहीं हैं! अल्प बुद्धिवाले लोग भी अपने आपको महान् बुद्धिमान् मानते हैं। महाराजश्री : तब तो बड़ी आफत है! जहाँ अहंकार पनपता है... वह समाज पतन के गर्त में गिरता है! समयज्ञ पुरुष की कुछ बातें ऐसी भी होती हैं कि जिन बातों को हर मनुष्य नहीं समझ सकता है, फिर भी वे बातें माननी उतनी ही आवश्यक होती हैं | एक कालज्ञ पुरुष पूरे परिवार को आफत से बचा सकता है... पूरे नगर को बचा सकता है और पूरे देश को बचा सकता है! किस समय, क्या करना, क्या नहीं करना - सूझ-बूझ होनी चाहिए। नवाब बेवकूफ बन गया : भोपाल का नवाब चाँद खाँ परस्त्रीलंपट था। गिनोर की राजरानी पर मोहित हुआ। गिनोर के राजा के साथ युद्ध किया । युद्ध में गिनोर का राजा वीरता से लड़ता हुआ मारा गया! गिनोर पर चाँद खाँ ने कब्जा कर लिया। वह पहुँचा सीधा रनिवास में। रानी से कहा : 'मैं तेरे साथ शादी करूँगा।' रानी समयज्ञ थी, चतुर थी। उसने कहा : 'अच्छी बात है, मैं आपसे शादी करूँगी, आज ही करूँगी और इसी महल में आपकी बीवी बन कर आपको स्वर्ग का सुख दूँगी। आप अभी जाइये, मैं आपके लिए नये सुन्दर वस्त्र, मुगट वगैरह भेजती हूँ, आप पहन कर आइये, मैं भी सुन्दर वस्त्र पहन लेती हूँ।' For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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