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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-८३ ११३ आवश्यक है। ग्रन्थकार आचार्यश्री ने दीर्घदृष्टि से यह बात कही है। उनका तात्पर्य समझना चाहिए। भूतकाल में जितने श्रावक हो गये...उनके जीवनचरित्र पढ़ोगे तब यह बात सरलता से समझोगे। हाँ, यदि आपके हृदय में वैराग्य-भावना जागी हो, त्यागमार्ग पर चलने की तैयारी करनी हो, तब तो अर्थ-काम की वृद्धि का लक्ष्य नहीं रहेगा। अर्थ-काम का त्याग करने का लक्ष्य बनेगा। परन्तु गृहस्थावास में रहना है, तो धर्म-अर्थ और काम-तीनों की वृद्धि का लक्ष्य रखना पड़ेगा । अर्थ-काम की वृद्धि में गलत उपाय नहीं करने चाहिए - इतना खयाल रखना पड़ेगा। __धर्मपुरुषार्थ में वृद्धि करने के लिए भी आप में सात्त्विकता तो होनी ही चाहिए। जीवन के हर प्रसंग में सात्विकता अपेक्षित है। जब गुर्जरेश्वर कुमारपाल ने देवी कंटकेश्वरी को पशुबलि देने से इन्कार कर दिया था, तब कोपायमान देवी ने कुमारपाल पर त्रिशूल का प्रहार कर, कुष्ठ रोगी बना दिया था...उस समय कुमारपाल की सात्विकता का भव्य दर्शन होता है। जरा भी दीनता नहीं...जरा भी भय नहीं! गुरुदेव हेमचन्द्रसूरीश्वरजी ने देवी को विवश कर कुमारपाल को रोगमुक्त करवाया था...। सुना है न यह प्रसंग? सत्व को बढ़ाना होगा! : पश्चिम के देशों में नित्शे' प्रसिद्ध दार्शनिक विद्वान् हो गया | बड़ा तत्त्वचिंतक था। उसकी बुद्धि अत्यन्त कुशाग्र थी। तर्क करने की उसकी शक्ति अपूर्व थी। हालाँकि अपनी बुद्धि का जितना सदुपयोग करना चाहिए उतना वह नहीं कर पाया था, फिर भी वह बड़ा हिम्मतवाला मनुष्य था। एक बार वह घूमने के लिए नगर के बाहर गया तो उसने एक सर्प को देखा। नित्शे घबराया नहीं, वह सर्प के पास जाकर बैठ गया। साँप भी क्या पता कुछ समझ गया होगा...अपने शरीर को सिकोड़ कर, मुँह छिपा कर बैठ गया। नित्शे का एक मित्र दूर खड़ा खड़ा यह द्रश्य देख रहा था। उसके पास जाकर नित्शे ने कहा : 'जीवन का एक महान् रहस्य मुझे आज मिल गया!' मित्र ने मजाक में पूछा : 'साँप से मिला वह रहस्य?' 'हाँ, साँप से मिला! विषैला साँप हिम्मत के अभाव में शरीर को सिकोड़ कर पड़ा रहा। उसने हो सके उतना शरीर-संकोच किया। उससे उसका स्पर्श क्षेत्र 'फील्ड आफ कोन्टेक्ट' सीमित हो गया।' 'आप क्या कहना चाहते हैं?' मित्र ने पूछा। For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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