SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० प्रवचन- ८३ जन्मा और पला कि जिसमें सारे लोग धर्मपरायण थे। विक्टर ने अपनी सन्तानों को भी उसी ढाँचे में ढाला। वह चार पादरियों का भाई, तीन पादरियों का भतीजा और चार पादरियों का पिता बना था । अपने यहाँ जिनशासन में भी परिवार के ५-५ व्यक्ति, ६-६ व्यक्ति साधुसाध्वी बने हैं, ऐसे अनेक उदाहरण अपने सामने हैं। दो-तीन गाँव तो ऐसे हैं कि एक-एक जैन परिवार में से कोई न कोई साधु बना है या साध्वी बनी है। अब अर्थपुरुषार्थ को लेकर कुछ उदाहरण बताता हूँ - १. 'ट्युवसक्टी' का प्रसिद्ध डॉक्टर ' बैंजामिन किटुज' अपने व्यवसाय के प्रति अत्यन्त निष्ठावान था । उसने अपनी प्रत्येक संतान को चिकित्सक बनाने का लक्ष्य रखा, वैसा ही उत्साह बढ़ाया और वातावरण बनाया । २. अमरीकी चित्रकार 'चार्ल्स पोले' अपनी कला में इतना तन्मय एवं सफल था कि उसका समूचा परिवार भी उसी व्यवसाय में ढल गया । वह उस देश के प्रसिद्ध चित्रकारों का पिता तथा दादा था। ३. डेन्मार्क के एडममोल्ट गाँव का फ्रेडरिक २२ संतानों का पिता था। उसने हर संतान के प्रति अपना कर्तव्य निभाया और उन्हें गुणवान्, चरित्रवान् और प्रतिभावान् बनाने में भरसक प्रयत्न किया । फलतः उनकी संतानों में से चार राजदूत बने, दो सेनाध्यक्ष बने, पाँच राज्यमंत्री बने तथा ग्यारह महापौरराज्यपाल जैसे उच्च पदों पर आसीन हुए। किसी भी पुरुषार्थ में सफलता तभी प्राप्त होती है, मनोबल हो और पुरुषार्थ का सही लक्ष्य हो । हिंमत-सबसे बड़ा शस्त्र ! नेपोलियन का एक उपसेनापति सेना के एक भाग को शत्रु की ओर आगे बढ़ने के लिए तैयारियाँ करवा रहा था । नेपोलियन ने पूछा : 'सभी तैयारियाँ हो गई क्या?' 'हाँ, सभी तैयारियाँ हो गई हैं । ' जब मनुष्य में सुदृढ़ For Private And Personal Use Only 'युद्ध की साधन-सामग्री?' 'सब व्यवस्थित है, परन्तु मुझे लगता है कि इस समय युद्ध करने में मजा नहीं आयेगा।' 'क्यों?' नेपोलियन ने पूछा ।
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy