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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-८३ १०७ जीवन को गौरवान्वित करें : दुष्टों की संगति और सज्जनों की मंडली में प्रवेश पाना-मनुष्य की स्वयं की सूझ-बूझ पर निर्भर होता है। दूषित दृष्टिकोण रखने पर दुष्टों के साथ संपर्क बनता है और उनके सहवास से दुःखद दुर्गुणों का उपहार प्राप्त होता है। सम्यक दृष्टिकोण रखने पर सज्जनों के साथ संपर्क बनता है और उनके सहवास से सुखद सद्गुणों का खजाना प्राप्त होता है। आपकी दृष्टि...आपका लक्ष्य जैसा होगा उस दिशा में आपका प्रयत्न होनेवाला है। ग्रन्थकार आचार्यश्री वैसी एक सम्यक दृष्टि देते हैं। वे कहते हैं, धर्म-अर्थ और काम की वृद्धि का लक्ष्य रखो, यदि गृहस्थ जीवन को गौरवान्वित रखना है तो। गृहस्थ जीवन गौरवशाली होना चाहिए। पशु-पक्षी जैसा जीवन जीने में कोई गौरव प्राप्त नहीं होगा। ___ मछलियों का अपना संसार है और मच्छरों का अपना! गायों की अपनी दुनिया है और कुत्तों की अपनी । क्या विशेष महत्त्व होता है उनके जीवन का? खाना-पीना, मैथुनसेवन करना और लड़ना-झगड़ना...यह होता है पशु-पक्षी का जीवन | यदि मनुष्य भी ऐसा ही जीवन पसन्द करता है तो पशु और मनुष्य में क्या फर्क रहेगा? मन की खिड़की खोलो : ___संसार में मनुष्य के सामने असंख्य सुविधाएँ और असंख्य विभूतियाँ पड़ी हुई हैं। मनुष्य उनमें से अपने लिए श्रेष्ठ से श्रेष्ठ या निकृष्ट से निकृष्ट चुन सकता है। जैसी उसकी दृष्टि होगी, वैसा चुनाव वह करेगा। यदि धर्म-अर्थ और काम की वृद्धि करने का उसका लक्ष्य होगा तो उसी लक्ष्य से वह सोचेगा और कार्य करेगा। कार्य करने से पूर्व सही दिशा में विचार करना चाहिए। विचार मन से किये जाते हैं, इसलिए सर्व प्रथम मन को परिष्कृत करना चाहिए। सुखी और समुन्नत जीवन तभी मनुष्य जी सकता है। ___ मन को परिष्कृत करने के लिए सज्जनों का समागम होना बहुत आवश्यक होता है। आध्यात्मिक एवं नैतिक जागृति प्रदान करनेवाली किताबों का अध्ययन करना बहुत आवश्यक होता है। इससे मन के विचारों को सही दिशा प्राप्त होगी। भौतिक और धार्मिक उन्नति के विषय में सुयोग्य मार्गदर्शन देनेवाले पुरुषों के सम्पर्क से पुरुषार्थ में उत्साह और प्रगति बढ़ती रहेगी। ध्यान में रखने की बातें : तीनों पुरुषार्थ में उन्नति करने के लिए, साथियों के साथ अपने आदान For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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