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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-८२ १०२ 'मैं कौन हूँ?' यह प्रश्न आत्मस्मृति करानेवाला है। मैं शुद्ध आत्मसत्ता हूँ। मेरे में अगाध शक्ति भरी पड़ी है।' इस विचार से कार्य करने की तत्परता बढ़ती है। बुद्धि की निर्मलता और सूक्ष्मता ही बढ़ती है। आत्मविश्वास बढ़ता है। 'मेरे मित्र कौन हैं?' यह विचार करना बहुत आवश्यक बताया है कार्यसिद्धि के लिए। आपके प्रति हार्दिक स्नेह और श्रद्धा रखनेवाले मित्र चाहिए। मित्र की सही पहचान होनी चाहिए। मित्रता का दिखावा करनेवाले लोग, अपनी स्वार्थसिद्धि तक ही मित्र होते हैं। स्वार्थसिद्धि हो जाने पर वे शत्रु बन जाते हैं। इसलिए कहता हूँ कि मित्र की सही पहचान करना और ऐसे सच्चे मित्रों पर ही विश्वास करना । जो अपने मित्र के लिए कुछ त्याग कर सकता है, कुछ दुःख भी सहन कर सकता है...वह होती है मित्रता । लालाजी की बात! : भारत की आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़नेवालों में लाला लाजपतराय का नाम प्रथम पंक्ति में आता है। लालाजी के अध्ययनकाल की एक घटना बताता हूँ। लालाजी के साथ गौरीप्रसाद नाम का विद्यार्थी पढ़ता था। दोनों में अच्छी दोस्ती थी। गौरी पढ़ने में तेज था, मेधावी छात्र था। वर्ग में हमेशा वह प्रथम नंबर पास होता था। लालाजी का दूसरा नंबर आता था। लालाजी की इच्छा हुई कि वे प्रथम पास हो। उन्होंने पढ़ाई में सख्त मेहनत शुरू कर दी। वार्षिक परीक्षा के दो महीने बाकी थे। गौरी की माँ बीमार हो गई। गौरी के अलावा माँ की सेवा करनेवाला और कोई नहीं था। गौरी ने माँ की सेवा करने में कोई कसर नहीं रखी...फिर भी माँ नहीं बची। दो महीने माँ की सेवा में लगे थे। गौरी परीक्षा की तैयारी नहीं कर पाया था। दूसरे छात्रों ने एवं शिक्षकों ने सोच लिया था कि इस परीक्षा में लालाजी प्रथम आयेंगे। परन्तु जब ‘रीजल्ट' आया...गौरी प्रथम नंबर पास हुआ। लालाजी द्वितीय नंबर से पास हुए थे। शिक्षकों ने फिर से दोनों के पेपर जाँचे। लालाजी ने प्रश्नों के उत्तर अधूरे छोड़ दिये थे। शिक्षकों ने लालाजी को पूछा : 'उत्तर अधूरे क्यों छोड़ दिये?' __ लालाजी ने कहा : 'गुरुजी, गौरी गरीब विद्यार्थी है। माँ की सेवा करने में...पढ़ने का उसको समय नहीं मिला, ऐसी स्थिति में मैं प्रथम नंबर पास हो सकता था, परन्तु गौरी को 'स्कॉलरशिप' नहीं मिलती, तो वह आगे पढ़ नहीं सकता...इसलिए मैंने जान-बुझकर उत्तर अधूरे लिखे। कृपा करके आप यह बात गौरी को मत बताना...वह मेरा दोस्त है।' For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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