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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-५१ कहें तो मैं पूरे संघ को ऐसे नगर में ले चलूँ, कि जहाँ सुकाल हो । यहाँ के घर-बार सब छोड़ने पड़ेंगे। जिसको सब कुछ छोड़कर आना हो वे चले आयें, आकाशमार्ग से ले चलूँगा।' संघ के लोग तैयार हो गये। सबको एक बड़ी जाजम-दरी पर बिठाया और आकाशमार्ग से दूसरे नगर में पहुँचा दिया। उस नगर में सुकाल था, सबको आवास, भोजन आदि मिल गया। सबके प्राण बच गये। __जिनशासन के आचार्य पर, पूरे चतुर्विध संघ के हित की जिम्मेदारी होती है। जब कभी संघ पर कोई आपत्ति आये, आचार्य उस आपत्ति को दूर करने का भरसक प्रयत्न करें। श्रमण-जीवन की मर्यादाओं का मूलमार्ग और अपवाद मार्ग वे जानते होते हैं। जिस समय उनको जो उचित लगें, वे कर सकते हैं। उस बात में दूसरे लोगों को टीका-टिप्पणी करने की नहीं होती है। आचार्य का स्थान उतना श्रद्धेय होता था। आचार्य भी अपने विशिष्ट ज्ञान से, विशिष्ट शक्ति से, विशिष्ट उपकारों से, संघ के हृदय में श्रद्धा, आदर और बहुमान उत्पन्न करते थे। संघ-हृदय में धर्मश्रद्धा बनी रहे, इसलिए भी वे जागरुक होते थे। वर्तमानकाल की स्थिति की आलोचना मुझे नहीं करना है। वर्तमानकालीन परिस्थिति बड़ी नाजुक है, दुःखद है और चिन्ताजनक है। उपद्रवग्रस्त स्थान का त्याग करना चाहिए, इस छठे सामान्य धर्म का विवेचन समाप्त करता हूँ, इतना विवेचन पर्याप्त है न? कल सातवें सामान्य धर्म का विवेचन करूँगा। आज बस, इतना ही। For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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