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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-५१ युद्ध नहीं हो सकते हैं। कभी कभी कोई सत्ता, उन समझौते का उल्लंघन कर युद्ध करती हैं....उस समय नागरिकों को सतर्क बन जाना चाहिए। भारत के साथ पाकिस्तान ने वैसे तीन-तीन युद्ध किये....परन्तु वे युद्ध ज्यादातर दो देशों की सीमा पर हुए थे, इसलिए प्रजा को ज्यादा भय नहीं था। परन्तु यदि वैसा युद्ध देश के भीतरी प्रदेश में फैल जाय तो प्रजा को निरुपद्रवी प्रदेश में चले जाना चाहिए | भारत के अनेक विभाग हैं, अनेक राज्य हैं, जिस राज्य में युद्ध नहीं फैला हो, उस राज्य में चले जाना चाहिए। जैसे, मध्यप्रदेश में युद्ध का आतंक फैला हो और गुजरात में युद्ध नहीं हो, तो गुजरात में स्थानान्तर कर देना चाहिए। ___कभी ऐसा भी हो सकता है कि पर राष्ट्र का आक्रमण नहीं हो, अपने ही देश में एक पार्टी दूसरी पार्टी से सत्ता छीन लेने को सशस्त्र क्रान्ति कर दें! सेनापति कभी विद्रोह कर दें और देश में आतंक फैल जाय, तो भी सद्गृहस्थ को वैसे स्थान में, वैसे प्रदेश में पहुँच जाना चाहिए कि जहाँ ऐसे उपद्रव नहीं हों। जहाँ पर धर्म, अर्थ और काम - इन तीन पुरुषार्थो को क्षति न होती हों। परमात्मा की शरण लेकर निर्भयता से उपद्रवों के बीच जियो : सभा में से : यदि देशव्यापी उपद्रव फैल जाय तो कहाँ जायें? महाराजश्री : दूसरा कोई देश-प्रदेश ही नहीं हो कि जहाँ उपद्रव नहीं हो, तब तो फिर धर्म की, परमात्मा की शरण लेकर निर्भयता से उन उपद्रवों के बीच रहना चाहिए। इधर-उधर दौड़-भाग नहीं करनी चाहिए। जो सबका होगा वह आपका होगा। जब देश में राजाओं के अलग-अलग राज्य थे उस समय राजाओं के परस्पर युद्ध, सामान्य बात थी! देश में कहीं न कहीं युद्ध चलता ही रहता था! परन्तु एक राज्य में से दूसरे राज्य में जाने का 'चान्स' बना रहता था! वर्तमान समय में जबकि लोकशाही है, तब स्वतन्त्र कोई राज्य नहीं है। संपूर्ण भारत सार्वभौम राष्ट्र है। पर राष्ट्र का आक्रमण होता है तो पूरे भारत पर होता है। परन्तु आक्रमण कभी-कभी ही होता है। हाँ, देश के भीतर दंगे होते रहते हैं। बड़े नगरों में बार-बार दंगे होते हैं न? लोकशाही-प्रजासत्ताक राष्ट्र में प्रजा को विशेष अधिकार दिये गये हैं। कुछ अहिंसक प्रकार के दंगे करने की इजाजत दी गई है। वाणी-स्वातंत्र्य दिया गया है। प्रजा जो चाहे वह बोल सकती है। किसी की भी आलोचनाप्रत्यालोचना कर सकती है। ऐसे अधिकार वैसी प्रजा को दिये गये हैं कि जो For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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