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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-७१ २४९ भिखारी के प्रतिज्ञा-पालन के धर्म से सेठ बहुत प्रभावित थे। उनकी यह श्रद्धा होगी कि 'धर्म से पापकर्मों का नाश होता है, धर्म के पालन से मनुष्य का भाग्योदय होता है....।' वास्तव में, भिखारी का भाग्योदय तो तभी से शुरू हो गया था, जब से गुरूदेव का मिलना हुआ था! उसके प्रति लोगों के हृदय में भी सहानुभूति पैदा हो गई थी, वह क्या भाग्योदय नहीं था? सेठ की भी महानता थी : सेठ ने भिखारी के भाग्योदय के विषय में जो अनुमान किया, वह सही था। आगे जो उन्होंने सोचा वह उन्हीं की विशेषता माननी चाहिए। उन्होंने भिखारी को अपनी दुकान में हिस्सेदार बनाने का जो सोचा, वह सेठ की विशेषता थी। अन्यथा वे नौकर के रूप में भी दुकान में रख सकते थे। यदि सेठ की दृष्टि मात्र पैसा कमाने की ही होती तो वे भिखारी को नौकर रख लेते। केवल स्वार्थ होता तो, भिखारी को दुकान में हिस्सेदार नहीं बनाते। __ सभा में से : सेठ के हृदय में ऐसी अच्छी भावना जो पैदा हुई, उसमें क्या भिखारी का पुण्यकर्म प्रेरक बना होगा? ___ महाराजश्री : अवश्य, मानना ही पड़ेगा। अलबत्ता, सेठ की भी योग्यता थी। निमित्त अच्छा हो परन्तु उपादान योग्य न हो, तो कार्य सम्पन्न नहीं होता है। उपादान योग्य हो, परन्तु निमित्त अच्छा नहीं मिले, तो भी कार्य संपन्न नहीं हो सकता है। सेठ ने भिखारी को अपनी दुकान में हिस्सेदार बना दिया। अब भिखारी, भिखारी नहीं रहा। भिखारी सेठ बन गया। रहने को मकान ले लिया, शादी भी कर ली। नगर में प्रतिष्ठित व्यक्ति के रूप में माना जाने लगा। । परन्तु वह अपनी प्रतिज्ञा-एक धान्य, एक सब्जी और एक विगई खाने की, बराबर निभा रहा है। प्रसन्नचित्त से निभा रहा है। दुःख के दिनों में ली हुई प्रतिज्ञा को सुख के दिनों में निभाना सरल बात नहीं है। दृढ़ मनोबल हो तभी प्रतिज्ञा-पालन हो सकता है। अन्यथा प्रतिज्ञा का भंग करते देर नहीं लगती है। _भिखारी सेठ बन गया, फिर भी विनम्र एवं सात्त्विक बना रहा। अपने उपकारी सेठ का एहसान भूलता नहीं है। अपनी प्रकृति के अनुकूल भोजन करता है। वह भी, जब क्षुधा का अनुभव होता है, तभी भोजन करता है। For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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