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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-६९ २३१ ● जिस दिशा में परमात्मा विराजमान हो, उसी दिशा में देखने का है। उस दिशा के अलावा तीन दिशाओं का त्याग करने का है। यानी तीन दिशाओं में देखने का नहीं है । ० चैत्यवंदन करते समय योगमुद्रा, मुक्ताशुक्तिमुद्रा और जिनमुद्रा करने की होती है। अर्थात् दो हाथ भिन्न-भिन्न तरह जोड़ने के होते हैं। चित्त के भावों की शुद्धि-वृद्धि में मुद्राएँ भी विशिष्ट कारण बनती है । मुद्राएँ नहीं आती हों तो अवश्य सीख लेनी चाहिए । ० चैत्यवंदन की क्रिया में जो सूत्र बोले जाते हैं, उन सूत्रों में तीन सूत्र ‘प्रणिधान-सूत्र' हैं। एक सूत्र में (जावंति चेइयाइ) तीनों लोक में जितने जिनमन्दिर हैं उनकी वंदना की जाती है। दूसरे सूत्र में ( जावंत केवि साहू) ढाई द्वीप में जितने साधु भगवंत हैं, उनको वंदना की जाती है। तीसरे सूत्र में (जय वीयराय) परमात्मा से प्रार्थना की जाती हैं। तीनों वक्त चित्त को एकदम एकाग्र करना, वह प्रणिधान है । परन्तु प्रणिधान तभी हो सकेगा जब आपको सूत्रों के अर्थ का ज्ञान होगा। अर्थज्ञान तो पाना ही चाहिए। सूत्रों का अर्थ समझे बिना आप कैसे धर्मक्रिया करते हैं, मैं नहीं समझ पाता । आप लोगों के मन में अर्थज्ञान पानेकी इच्छा क्यों नहीं जगती ? परमात्मा की पूजा करते हैं, सामायिक करते हैं, प्रतिक्रमण करते हैं.... परन्तु सूत्रों का अर्थज्ञान प्राप्त नहीं करते हैं....आश्चर्य ! 'जय वीयराय' सूत्र का अर्थ जाने बिना आप परमात्मा से कैसे प्रार्थना कर सकते हैं? केवल सूत्रपाठ कर लेने से हार्दिक प्रार्थना नहीं हो सकती है। परमात्मपूजा एकदम भाव से किया करें। सभी मंगलों में यह श्रेष्ठ मंगल है। चित्तशान्ति पाने का और आत्मनिर्मलता पाने का श्रेष्ठ मार्ग है। परमात्मा की पूजा किये बिना मुँह में पानी भी नहीं डालना चाहिए, भोजन नहीं करना चाहिए। परमात्मा से हार्दिक प्रेम हो जाने पर उनका दर्शन-पूजन किये बिना भोजन भाता भी नहीं है। ऐसी मानसिक स्थिति बन जाती है । दैनिक जीवन में परमात्मपूजा को स्थान दे दें। आज बस, इतना ही । For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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