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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-६८ २१७ घर पर आये-गये अतिथि एवं स्नेही-स्वजनों के आदर-सत्कार की जिम्मेदारी होती है। हाँ, कोई छोटा-सा गृहउद्योग हो कि फुरसत के समय में घर पर ही महिलाएँ कर सकें, तो अनिवार्य संयोग में अनुचित नहीं है। अन्यथा, महिलाओं को अर्थोपार्जन के लिए प्रेरित नहीं करना चाहिए | पुरुषों को भी चाहिए कि वे सही मार्ग पर चलकर अर्थोपार्जन करें। ऐसे धंधे नहीं करें कि जिससे आपत्ति में फँस जायें | मन उद्विग्न हो जाय । चित्त में आर्तध्यान-रौद्रध्यान बढ़ जाय । पैसे का पागलपन तो आना ही नहीं चाहिए । श्रीमन्त होने का व्यामोह नहीं होना चाहिए। इस प्रकार, धर्म-अर्थ और काम - तीन पुरुषार्थ में परिवार को समुचित ढंग से संजोये रखना चाहिए। उपेक्षा मत करो। परिवार की सुरक्षा का ख्याल भी करना चाहिए। इसलिए ग्रन्थकार आचार्यदेव कहते हैं : ‘अपायपरिरक्षोद्योगः।' __ आश्रितों को अपायों से-नुकसानों से बचाये रखना चाहिए। अपाय दो प्रकार के होते हैं : इहलौकिक और पारलौकिक। जो व्यक्ति अपने आश्रित लोगों की अनर्थों से रक्षा करता है वही वास्तव में मालिक कहलाता है। यदि आप लोग परिवार के मालिक कहलाते हो तो आपका कर्तव्य होता है कि आप परिवार को अनर्थों से बचायें । सभा में से : घर में जो हमारा कहा मानें, उसको बचा सकते हैं, जो हमारा कहा माने ही नहीं, उसको कैसे बचायें? महाराजश्री : जो व्यक्ति आपका कहा नहीं मानता है और मनमाने ढंग से काम करता है, तो उसको निभाने की जरूरत ही क्या है? उसका पालन ही क्यों करना चाहिए? ऐसे लोगों की बात बाद में करेंगे, पहले तो, जो लोग आपकी बात मानते हैं, उनको अनर्थों से बचाना चाहिए, यानी वे अपने जीवन में ऐसे काम ही नहीं करें कि जिससे इस जीवन में दुःखी हों और परलोक में भी दुःखी हों। खयाल बचपन से रखो : एक बात समझ लो कि पहले से ही परिवार को अच्छे संस्कार दिये होंगे तो ही ये बातें बन सकेंगी। बुरी आदतों में फँस जाने के बाद बाहर निकलना मुश्किल For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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