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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१५ प्रवचन-६८ आवश्यकताएँ तीन प्रकार की होती हैं : धर्म, अर्थ और काम | ० आश्रितों को धर्माराधना करने की सुविधा प्राप्त है या नहीं? ० आश्रितों को उचित रुपये मिलते हैं या नहीं? ० आश्रितों को उचित पाँच इन्द्रियों के विषय प्राप्त होते हैं या नहीं? आपको इन बातों का खयाल करना ही चाहिए। इन बातों का खयाल करते रहोगे तो ही आश्रित लोग अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहेंगे और उन्मार्ग की ओर नहीं जायेंगे । आश्रितों के भी अपने कर्तव्य है : सभा में से : हम सभी का खयाल करते रहें और वे लोग हमारा खयाल नहीं करें....तो हमारा मन टूट जाये न? ___ महाराजश्री : बात सच्ची है। आप आश्रितों के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाते हैं और आश्रित लोग आपका खयाल नहीं करते हैं, तो यह संबंध टिक नहीं सकता। आश्रितों को आपके स्वास्थ्य का, आपकी सुविधाओं का, आपकी अर्थव्यवस्था का खयाल करना ही चाहिए। आपकी धर्माराधना का भी खयाल करना चाहिए | बहुत ज्यादा अपेक्षाएँ भी नहीं रखनी चाहिए आप से | - यदि माता-पिता जो कि निवृत्त जीवन जीते हैं और वृद्धावस्था में हैं, अपने पुत्र से, पुत्रवधू से और पौत्रों से ज्यादा सुख-सुविधाओं की अपेक्षा रखते हुए झगड़ते रहते हैं, वे स्वयं दु:खी होते हैं और परिवार में अशान्ति बनाये रखते हैं। ___- यदि पत्नी पति से ज्यादा अपेक्षाएँ रखती हैं और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए झगड़ती रहती है, तो वह अपना ही सुख नष्ट करती है। वह यह समझती है कि पति को मेरी सभी इच्छाएँ पूर्ण करनी चाहिए, यह धारणा गलत है। - यदि संतानें पिता से ज्यादा अपेक्षाएँ रखती है तो वे भी अशान्ति ही बनाये रखती हैं। संतानों के सभी मौज-शौक पूरा करने के लिए पिता बंधा हुआ नहीं है। जीवन जीने के लिए जो आवश्यकताएँ होती हैं, उन आवश्यकताओं की पूर्ति अवश्य होनी चाहिए। जैसे कि उनको पर्याप्त और उचित भोजन मिलना चाहिए। उनको पर्याप्त और उचित वस्त्र मिलने चाहिए | उनको शिक्षा और औषध मिलने चाहिए। For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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